________________
५८
कर्म का विज्ञान दादाश्री : मनुष्य में से फिर तो देवता में, सबसे बड़ा देवता बनकर खड़ा रह सकता है, इस दुनिया में टॉपमोस्ट। और नीच योनि अर्थात् कैसी नीच योनि? घृणाजनक योनि में जाता है। जिसका नाम सुनते ही घृणा होती
मनुष्य, मनुष्य जन्म में ही कर्म बाँध सकता है। बाक़ी दूसरे किसी योनि में कर्म नहीं बाँधता। दूसरी सभी योनियों में कर्म भुगतता है। और यहाँ मनुष्य में कर्म बाँधता भी है और कर्म भुगतता भी है, दोनों होता है। पिछले कर्म भुगतते जाते हैं और नये बाँधते हैं। इसलिए यहाँ से चार गति में भटकना है, यहाँ से जाना होता है और ये गायें-भैंसे, ये सब जानवर दिखते हैं, ये देवी-देवता, उन्हें कर्म भोगने हैं सिर्फ, उन्हें कर्म करने का अधिकार नहीं है।
प्रश्नकर्ता : पर अधिकांश मनुष्य के तो कर्म अच्छे होते ही नहीं हैं न?
दादाश्री : यह तो कलियुग है और दूषमकाल है, इसलिए काफी कुछ कर्म खराब ही होते हैं।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् यहाँ पर दूसरे नये कर्म बँधेगे ही न?
दादाश्री : रात-दिन बँधते ही रहते हैं। पुराने भुगतता जाता है और नये बांधता जाता है।
प्रश्नकर्ता : तो इससे अब दूसरा कोई अच्छा जन्म है क्या?
दादाश्री : किसी जगह पर नहीं है। इतना ही अच्छा है। दूसरे तो दो प्रकार के भव। यहाँ यदि कर्ज हो गया हो, यानी खराब कर्म बंध गए हों, वह कर्ज़ कहलाता है। तब फिर जानवरों में जाना पड़ता है, डेबिट भुगतने के लिए और नर्कगति में जाना तो डेबिट अधिक हो गया हो, तो वहाँ पर कर्ज भुगतकर वापिस आना है, डेबिट भुगतकर। यहाँ अच्छे कर्म हुए हों, तो बड़े, ऊँची जाति के मनुष्य बनते हैं। वहाँ पूरी ज़िन्दगी सुख होता है। वह भोगकर वापिस जैसा था वैसा का वैसा, और नहीं तो देवगति