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कर्म का विज्ञान
में जाता है। क्रेडिट के सुख भोगने के लिए। पर क्रेडिट पूरी हो गई, लाख रुपये पूरे हो गए, खर्च हो गए तो वापिस यहीं पर, मुआ!
प्रश्नकर्ता : अन्य सभी जन्मों से इस मनुष्यजन्म का आयुष्य अधिक है न?
दादाश्री : नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। इन देवी-देवताओं का लाखों वर्षों का आयुष्य होता है।
प्रश्नकर्ता : पर देवी-देवता बनने के लिए तो ये सारे कर्म पूरे हो जाएँ, फिर नंबर आएगा न?
दादाश्री : नहीं, ऐसा कुछ नहीं। यदि कोई सुपरह्युमन हो तो देवता ही बनता है। खुद का सुख खुद नहीं भोगता और दूसरों को दे देता है, वह सुपरह्युमन कहलाता है। वह देवगति में जाता है! ।
प्रश्नकर्ता : खुद को सुख नहीं हो, तो फिर वह दूसरों को किस तरह सुख दे सकेगा?
दादाश्री : इसलिए ही नहीं दे सकता न, पर कोई ऐसा मनुष्य हो, करोडों में एकाध मनुष्य, वह खुद का सुख दूसरों को दे देता है, वह देवगति में जाता है। पहले तो ऐसे बहुत लोग थे। सौ में से दो-दो, तीनतीन प्रतिशत, पाँच-पाँच प्रतिशत थे। अभी तो करोड़ों में दो-चार निकलते हैं शायद। अभी तो दुःख नहीं दे तो भी समझदार कहलाएगा। दूसरों को कुछ भी दुःख नहीं दे तो फिर से मनुष्य में आता है। मनुष्य में अच्छी जगह पर कि जहाँ बंगला तैयार हो, गाड़ियाँ तैयार हों, वहाँ जन्म होता है,
और पाशवता के कर्म करे, ये मिलावट करे, लुच्चापन करे, चोरियाँ करे, तो पशु में जाना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : तो नियम क्या है?
दादाश्री : अधोगति में जानेवाला हो, वह पकड़ा नहीं जाता और ऊर्ध्वगति में जो जाता है, ऐसे मनुष्य के हल्के कर्म होते हैं न, तो उसे पुलिसवाले से पकड़वा ही देते हैं तुरन्त ही। वह आगे उल्टा जाते हुए रुक