Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 77
________________ ६४ कर्म का विज्ञान तरह पता चलता है? दादाश्री : उसके सारे लक्षण ही कह देते हैं। अभी उसके विचार हैं न, वे विचार ही पाशवता के आते हैं। कैसे आते हैं? किसका भुगत लूँ? किसका खा जाऊँ, किसका ऐसा करूँ? मृत्यु समय की स्थिति का फोटो भी जानवर का बनता है। प्रश्नकर्ता : आम की गुठली बोने पर आम ही आता है, वैसे ही मनुष्य मरे तो मनुष्य में से वापिस मनुष्य ही बनता है? दादाश्री : हाँ, मनुष्य में से वापिस अर्थात् यह मेटरनिटी वॉर्ड में मनुष्य की कोख से कुत्ता नहीं जन्मता। समझ में आता है न! पर मनुष्य में जिसे सज्जनता के विचार हों यानी मानवता के गुण हों तो फिर वापिस मनुष्य में आता है, और खुद के हक़ का भोगने का हो, वह लोगों को दे दे तो देवगति में जाता है, सुपरह्युमन कहलाता है। और खुद की स्त्री भोगने में हर्ज नहीं है। वह हक़ का कहलाता है, पर अणहक्क (बिना हक़) का नहीं भोग सकते। वे भोग लेने के विचार हैं, वही मनुष्य में से दूसरे जन्म में जानवर में जाने की निशानी है उसकी। वह वीज़ा है, हम उसका वीज़ा देख लें न, तो पता चल जाता है। प्रश्नकर्ता : कर्म का सिद्धांत ऐसा है कि मनुष्य को उसके कर्म मनुष्य योनि में ही भुगतने पड़ते हैं। दादाश्री : नहीं। कर्म तो यहीं के यहीं भुगतने हैं। परन्तु जो विचार किए हुए हों कि किसका भोग लूँ, किसका ले लूँ, और किसका ये कर लूँ, ऐसे संकल्प-विकल्प किए हों, वे उसे ले जाते हैं वहाँ पर। यहाँ किए हुए कर्म तो यहीं के यहीं भुगत लेता है। पाशवता का कर्म किया हों, वह तो यहीं के यहीं भुगत लेता है। उसमें हर्ज नहीं है। आँखों से दिखें ऐसे पाशवता के कर्म किए हों, वे यहीं पर भुगतने पड़ते हैं। उन्हें किस तरह भुगतता है? लोगों में निंदा होती है, लोग दुत्कारते हैं। परन्तु यदि पाशवता के विचार किए, संकल्प-विकल्प खराब किए कि ऐसे ही करना चाहिए, ऐसे करना चाहिए, ऐसे भोगना चाहिए, योजनाएँ बनाईं। वे योजना उसे

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