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कर्म का विज्ञान
आई, दूसरी परत गई और तीसरी परत आई, इस तरह सारी परतें भुगत ली जाएँ, तब सभी आठ जन्म पूरे हो जाते हैं और वापिस यहाँ मनुष्य में आ जाता है। अधिक से अधिक आठ जन्म दूसरी गतियों में भटककर वापिस मनुष्य में आ ही जाता है। ऐसा कर्म का नियम है।
मनुष्यों के लायक हो, वैसे कर्म तो उसके पास पूँजी के रूप में रहते ही हैं। जहाँ जाए, देवगति में जाए तो भी। यानी पूँजी के आधार पर वापिस लौटकर आता है। इस तरह इस पूँजी को रखकर, बाकी दूसरे सारे कर्म भुगत लेता है।
प्रश्नकर्ता : मनुष्य में आता है, फिर उसका जीवन किस तरह चलता है? वह उसके भाव पर ही चलता है न? उसके कौन-से कर्मों के आधार पर उसका जीवन चलता है?
दादाश्री : उसके पास मनुष्य के कर्म तो पूँजी में हैं ही। यह पूँजी तो अपने पास है ही, परन्तु उधार हो गया हो तो उधार भुगत लो और फिर वापिस आओ, कहते हैं। क्रेडिट हो गया हो, तब क्रेडिट भुगतकर वापिस यहाँ पर आओ। यह तो पूँजी है ही अपने पास। यह पूँजी तो कम पड़े ऐसी है नहीं। यह पूँजी कब कम पड़ती है? कि जब कर्त्तापद छूटे तब छूटती है। तब मोक्ष में चला जाता है। नहीं तो कर्त्तापद छूटता ही नहीं न! अहंकार खतम हो जाए तब छूटता है। अहंकार हो, तब उन कर्मों को भुगतकर वापिस यहीं के यहीं आ जाता है मुआ।
प्रश्नकर्ता : दूसरी सभी योनियों में से वापिस मनुष्य में आता है, तो आए तब कहाँ पर जन्म लेता है? मछुआरे के वहाँ या राजा के वहाँ लेता है?
दादाश्री : यहाँ मनुष्य योनि में खुद के पास जो सामान तैयार रख गया था न, वह और दूसरा यह कर्ज़ खड़ा किया है, वह कर्ज चुकाकर आता है और फिर वहीं के वहीं आ जाता है और उस सामान से वापिस शुरू करता है। इसलिए हम जिस बाज़ार में जाते हैं, वे सारे काम निपटाकर वापिस घर पर ही आ जाते हैं। उसी तरह यह घर है। यहीं के यहीं वापिस