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कर्म का विज्ञान जाता है और उसके भाव बदल जाते हैं। कुदरत हेल्प किसे करती है? कि जो भारी है, उसे भारी होने देती है। हल्का है, उसे हल्का होने देती है। हल्केवाला ऊर्ध्वगति में जाता है। भारीवाला अधोगति में जाता है। यानी यह कुदरत के नियम हैं ऐसे। अभी जैसे किसीने कभी चोरी नहीं की हो
और एक बार चोरी करे न, तो तुरन्त पकड़ा जाता है और पक्का चोर पकड़ में नहीं आता। क्योंकि उसके भारी कर्म हैं, इसलिए उसमें पूरे मार्क्स चाहिए न! माइनस मार्क भी पूरे चाहिए न! तो ही दुनिया चलेगी न?
मनुष्यजाति में ही बंधे कर्म प्रश्नकर्ता : मैं इसलिए ही पूछ रहा हूँ कि मनुष्य जन्म के अलावा दूसरा कोई ऐसा जन्म है या नहीं कि जिसमें कम कर्म बँधते हों? ।
दादाश्री : और कहीं कर्म बँधते ही नहीं। दूसरी किसी योनि में कर्म बँधते ही नहीं, सिर्फ यहीं पर बँधते हैं और जहाँ नहीं बँधते, वे लोग क्या कहते हैं? कि यहाँ कहाँ इस जेल में आए? कर्म बँधे वैसी जगह तो मुक्तता कहलाती है, यह तो (जहाँ कर्म नहीं बंधे) जेल कहलाती है।
प्रश्नकर्ता : मनुष्य जन्म में ही कर्म बंधते हैं। अच्छे कर्म भी यहीं पर बँधते हैं न?
दादाश्री : अच्छे कर्म भी यही बँधते हैं और बुरे भी यहीं पर बँधते
ये मनुष्य कर्म बाँधते हैं। उनमें यदि लोगों को नुकसान करनेवाले, लोगों को दुःख देनेवाले कर्म होते हैं, तो वह जानवर में जाता है और नर्कगति में जाता है। लोगों को सुख देने के कर्म हों तो मनुष्य में आता है और देवगति में जाता है। यानी जैसे कर्म वह करता है, उस अनुसार उसकी गति होती है। अब गति हुई यानी फिर भुगतकर वापिस यहीं पर आना पड़ता है। ___कर्म बांधने का अधिकार मनुष्यों को ही है, दूसरे किसीको नहीं, और जिसे बाँधने का अधिकार है, उसे चारों गति में भटकना पड़ता है।