Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 69
________________ ५६ कर्म का विज्ञान है, उसका यह परिणाम आया है, पास हुआ है और अब वापिस नापास होने के लक्षण खड़े हो रहे हैं उसके । और इस गरीब को पास होने के लक्षण खड़े हो रहे हैं । प्रश्नकर्ता : पर वह गरीब आदमी, उसकी खुद की मानसिक स्थिति जब तक परिपक्व नहीं हो, तब तक कैसे समझेगा वह ? दादाश्री : यह मानने में ही नहीं आता। इसलिए इसमें बल्कि अधिक पाप बाँधता है । उसे यह समझना ही चाहिए कि मेरे ही कर्म का परिणाम है। करें अच्छा और फल खराब प्रश्नकर्ता : हम अच्छा करते हैं पर उसका फल अच्छा नहीं मिलता। उसका अर्थ ऐसा हुआ कि पूर्वजन्म के कुछ खराब कर्म होंगे, वे उसे केन्सल कर देते हैं? दादाश्री : हाँ, कर देते हैं । हमने ज्वार तो बोया और वे बड़े हो गए, और पूर्वजन्म का अपने खराब कर्म का उदय हो तो आखिरी वर्षा नहीं होती, तब सारी ही फसल सूख जाती है, और पुण्य ज़ोर करे तो तैयार हो जाती है, वर्ना हाथ में आया हुआ भी छिन जाता है। इसलिए अच्छे कर्म करो, वर्ना मुक्ति ढूंढो । दोनों में से एक रास्ता लो! इस दुनिया में से छूट जाने का रास्ता ढूंढो, या फिर अच्छे कर्म करो हमेशा के लिए। पर हमेशा के लिए अच्छे कर्म हो नहीं सकते मनुष्य से, उल्टे रास्ते चढ़ ही जाएगा। कुसंग मिलता ही रहता है। प्रश्नकर्ता : शुभ कर्म और अशुभ कर्म पहचानने का थर्मामीटर कौन-सा? दादाश्री : शुभ कर्म आएँ तब हमें मिठास लगती है, शांति लगती है, वातावरण शांत लगता है और अशुभ कर्म आएँ तब कड़वाहट उत्पन्न होती है, मन को चैन नहीं पड़ता । अयुक्त कर्म तपाता है और युक्त कर्म हृदय को आनंद देता है ।

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