Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ कर्म का विज्ञान खराबी, उसे लेकर बेचारा ऐसा होता है, उसमें फिर उसका क्या दोष? वह पत्थर मार जाए, फिर भी हम उसके साथ बैर नहीं रखते, उस पर करुणा रखनी चाहिए। गरीब-अमीर कौन से कर्म से? जो हो रहा है, उसे ही न्याय माना जाए तो कल्याण हो जाए। प्रश्नकर्ता : तो दादा, आपको नहीं लगता कि, दो लोग हों, उनमें से एक देखता हो कि यह आदमी इतना बुरा है, फिर भी इतनी अच्छी स्थिति में है और मैं इतना धर्मपरायण हूँ, फिर भी ऐसा दुःखी हूँ। तो उसका मन धर्म में से नहीं हट जाएगा? दादाश्री : ऐसा है न, यह जो दुःखी है वैसे कोई सारे ही धर्मपरायणवाले दुःखी नहीं होते। सौ में से पाँच प्रतिशत सुखी भी होते हैं। आज जो दुःख आया है, वह अपने ही कर्मों का परिणाम है। आज वह जो सुखी हुआ है, आज उसके पास पैसा है और वह सुख भोग रहा है, वह उसके कर्म का परिणाम है। और अब जो खराब कर रहा है उसका परिणाम आएगा, तब वह भुगतेगा। हम अभी जो अच्छा कर रहे हैं, उसका परिणाम हमें आएगा तब भुगतेंगे। प्रश्नकर्ता : दादा, आपकी यह बात सत्य है। पर यदि व्यावहारिक दृष्टि से देखा जाए तो एक व्यक्ति झोंपड़पट्टी में रहता है, भूखा होता है, प्यासा होता है। सामने महल में एक आदमी रहता हो। झोंपड़ीवाला देखता है कि मेरी ऐसी कैसी दशा है। मैं तो इतना अधिक प्रमाणिक हूँ। नौकरी करता हूँ, फिर भी मेरे बच्चों को खाने को नहीं मिलता। जब कि यह आदमी तो इतना अधिक उल्टा करता है, फिर भी वह महल में रहता है। तो उसे गुस्सा नहीं आएगा? वह किस तरह स्थिरता रख सकेगा? दादाश्री : अभी जो दुःख भोग रहा है, वह पहले की परीक्षा दी है, उसका परिणाम आ रहा है और उस महलवाले ने भी यह परीक्षा दी

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94