Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 67
________________ ५४ कर्म का विज्ञान पालन कर। किसी जीव को किंचित् मात्र दु:ख नहीं हो, वैसा कर। यदि तुझे सुखी होना हो तो! प्रश्नकर्ता : कोई महात्मा हो उन्हें डॉक्टर नहीं बनना चाहिए? दादाश्री : बनना चाहिए या नहीं बनना चाहिए, वह डिफरन्ट मेटर है। वह तो उसकी प्रकृति के अनुसार होता ही रहेगा। बाक़ी, मन में भाव ऐसा होना चाहिए। यानी डॉक्टर की लाइन में जा ही नहीं पाएगा फिर। किसीको किंचित् मात्र दुःख नहीं हो ऐसा भाव जिसका है, वह वहाँ क्यों मेढक मारेगा? प्रश्नकर्ता : दूसरी तरफ डॉक्टरी सीखकर हज़ारों लोगों के दर्द मिटाकर फायदा भी करता है न? दादाश्री : वह दुनिया का व्यवहार है। उसे फ़ायदा नहीं कहते। मंदबुद्धिवाले को कर्मबंधन किस तरह का? प्रश्नकर्ता : जो अच्छा व्यक्ति हो, तो उसे तरह-तरह के विचार आते हैं, एक मिनट में कितने ही विचार कर देता है। कर्म बाँध देता है और मंदबुद्धिवाले को तो समझ ही नहीं होती कुछ इसलिए उसे कुछ होता ही नहीं, निर्दोष होता है न! दादाश्री : वह समझदार समझदारी के कर्म बाँधता है और नहीं समझनेवाला नासमझी का कर्म बाँधता है। पर नासमझीवालों के कर्म बहुत मोटे होते हैं और समझदारीवाले तो विवेक सहित ऐसे बाँधते हैं। इसलिए नासमझीवाले के कर्म सारे जंगली जैसे होते हैं, जानवर जैसे, उसे समझ ही नहीं है, भान ही नहीं फिर, वह तो किसीको देखे और पत्थर मारने को तैयार हो जाता है। प्रश्नकर्ता : हमें ऐसे लोगों पर दया नहीं रखनी चाहिए? दादाश्री : रखनी ही चाहिए। जिसे समझ नहीं हो, उसकी तरफ दयाभाव रखना चाहिए। उसकी हेल्प करनी चाहिए कुछ। दिमाग की

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