Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 66
________________ कर्म का विज्ञान ५३ से किया हुआ पाप छोड़ता नहीं है और जान-बूझकर करनेवाले को भी छोड़ता नहीं है। परन्तु नासमझीवाले को कुछ मदद मिल जाती है और जानबूझकर करनेवाले को नहीं मिलती। वह है औरों को परेशान करने का परिणाम प्रश्नकर्ता : शरीर के सुख-दुःख हम भुगतते हैं, वह व्याधि हो या चाहे कुछ भी आए, वह पूर्व के किस प्रकार के कर्मों के परिणाम होते हैं? दादाश्री : इसमें तो ऐसा है, कितने ही लोग नासमझी में बिल्ली को मार देते हैं, कुत्ते को मार देते हैं, उन्हें दुःख देते हैं, परेशान करते हैं। वे तो दुःख देते हैं, उस घड़ी खुद को भान नहीं होता कि इसकी क्या ज़िम्मेदारी आएगी? छोटी उम्र में बिल्ली के बच्चे मार देते हैं, कुत्ते के बच्चे मार देते हैं और दूसरा ये डॉक्टर मेढक काटते हैं, तो उसके प्रतिस्पंदन उनके शरीर पर पड़ेंगे। जो आप कर रहे हो, उसका ही प्रतिस्पंदन आएंगे। प्रतिस्पंदन हैं ये सारे। प्रश्नकर्ता : अर्थात् किसीके शरीर के साथ की गई छेड़खानी के प्रतिघोष आते हैं? दादाश्री : हाँ, वही। किसी जीव को किंचित् मात्र दुःख देना, वह आपके ही शरीर पर आएगा। प्रश्नकर्ता : यानी उसने यह सब जब किया होगा, जीवों को चीरा होगा तो उस समय वह अज्ञान दशा में होता है न! उसे ऐसा बैरभाव भी नहीं होता, तो भी उसे भुगतना पड़ेगा? दादाश्री : भूल से अज्ञान दशा में अंगारों पर हाथ पड़ता है न, तो अंगारे फल देते ही हैं। यानी कोई छोड़ता नहीं। अज्ञान या सज्ञान, अनजाने में या जान-बूझकर, भुगतने का तरीका अलग होता है, परन्तु कुछ छोड़ नहीं देते! ये सभी लोग दुःख भुगत रहे हैं, वह उनका खुद का ही हिसाब है सारा। इसलिए भगवान ने कहा है कि मन-वचन-काया से अहिंसा का

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