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कर्म का विज्ञान
प्रश्नकर्ता : हम भी किसीको परेशान करें और उसे दुःख हो, तो क्या करें?
दादाश्री : हमें प्रतिक्रमण करना पड़ेगा। कपड़े तो साफ रखने पड़ेंगे न! मैले कैसे किए जाएँ वे!
उत्तम प्रकार का वर्तन, किसीको किंचित् मात्र भी दःख नहीं हो ऐसा होना चाहिए। तो अभी दुःख होता है, उसका प्रतिक्रमण करें तो अंतिम दशा आएगी।
कोई किसीका दुःख ले सकता है? प्रश्नकर्ता : एक महान संत दो वर्ष पहले एक होस्पिटल में बहुत पीडा भुगत रहे थे। तब मैंने उनसे प्रश्न पूछा था कि आपको ऐसा क्यों हो रहा है? तो ऐसा कहा कि मैंने बहुत लोगों के दुःख ले लिए हैं। इसलिए यह सब मुझे हो रहा है। ऐसा कोई कर सकता है?
दादाश्री : किसीका दुःख कोई ले नहीं सकता। ये तो बहाने बनाए, संत के रूप में पूजनीय बनकर। खुद के ही कॉज़ेज़ के ये परिणाम हैं। यह तो बहाने बनाते हैं, खुद की आबरू रहे, इसके लिए। बड़े दुःख लेनेवाले पैदा हुए! संडास जाने की शक्ति नहीं, वे क्या दु:ख लेनेवाले थे! कोई किसीका ले ही किस तरह सकता है?
प्रश्नकर्ता : मैं भी नहीं मानता। दुःख लिया ही नहीं जा सकता।
दादाश्री : ना, ना! ये तो लोगों को मूर्ख बनाते हैं। कोई ले ही नहीं सकता। यानी ये सब तो बहाने बनाएँगे। फिर पूजे जाते हैं ! मैं तो मुँह पर कह दूँ कि आपके दुःख आप भुगत रहे हैं। क्या देखकर ऐसा बोलते हैं? बड़े आए दुःख लेनेवाले।
प्रश्नकर्ता : दुःख दे तो सकते हैं न?
दादाश्री : वह दुःख ले नहीं सकता और जो कोई हमें दु:ख दे सकता है, वह तो अपना इफेक्ट है। दे सकता है वह भी इफेक्ट है और