Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ कर्म का विज्ञान ४२ ऐसा होता है या नहीं होता? कोई दुःख उदयकर्म के अधीन नहीं होता। सभी दुःख अपनी अज्ञानता से हैं। कुछ लोग, बीमा नहीं करवाया हो और गोडाउन जल जाए, उस घड़ी वे शांत रह सकते हैं, अंदर भी शांति रह सकती है, बाहर और अंदर दोनों तरह से, और कुछ लोग तो अंदर दुःख और बाहर भी दुःख दिखाते हैं। वह सारी अज्ञानता, नासमझी है। वह गोडाउन तो जलनेवाला ही था। इसमें नया है ही नहीं। फिर तू सिर फोड़कर मर जाए, फिर भी उसमें बदलाव होनेवाला नहीं है। प्रश्नकर्ता : ये किसी भी वस्तु के परिणाम को अच्छी तरह स्वीकारना चाहिए? दादाश्री : हाँ, पोज़िटिव लेना, पर वह ज्ञान हो तो पोज़िटिव लेता है। नहीं तो फिर बुद्धि तो नेगेटिव ही देखती है। यह पूरा जगत् दुःखी है। मछली छटपटाए उस तरह छटपटा रहे हैं। इसे जीवन कैसे कहा जाए फिर? समझने की ज़रूरत है, जीवन जीने की कला जानने की ज़रूरत है। सभी के लिए कहीं मोक्ष नहीं है, जीवन जीने की कला, वह तो होनी चाहिए न . अमंगल पत्र, पोस्टमेन का क्या गुनाह? सारा दुःख नासमझी का ही है, इस जगत् में! खुद ने ही खड़ा किया हुआ है सारा, नहीं दिखने से! जले तब कहे न कि भाई, आप क्यों जल गए? तब कहता है, 'भूल से जल गया, क्या जान-बूझकर जलूँगा?' वैसे ही ये सारे दुःख भूल के कारण हैं। सारे दुःख अपनी भूल का परिणाम हैं। भूल चली जाएगी तो हो चुका। ___ प्रश्नकर्ता : प्रगाढ़ कर्म होते हैं, उसीके कारण हमें दुःख भुगतना पड़ता है? दादाश्री : अपने ही किए हुए कर्म हैं, इसलिए अपनी ही भूल है। किसी अन्य का दोष इस जगत् में है ही नहीं। दूसरे तो निमित्त मात्र हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94