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कर्म का विज्ञान
दुःख आपका है और सामनेवाले निमित्त के हाथों से दिया जा रहा है। पिताजी मर गए और चिट्ठी पोस्टमेन देकर जाता है, उसमें पोस्टमेन का क्या दोष?
पूर्वजन्म के ऋणानुबंधी
प्रश्नकर्ता : अपने जो रिश्तेदार होते हैं, अथवा तो वाइफ हो, बच्चे हों, आज अपने जो रिश्तेदार, ऋणानुबंधी हैं, उनके साथ अपना कुछ पूर्वजन्म का कोई संबंध होता है, इसलिए मिलते हैं?
दादाश्री : सही है। ऋणानुबंध के बिना तो कुछ भी होता ही नहीं न! सब हिसाब हैं। या तो हमने उन्हें दुःख दिया है या उन्होंने हमें दुःख दिया है। उपकार किए होंगे, तो उसका फल अभी मीठा आएगा । दुःख दिया होगा, उसका कड़वा फल आएगा।
प्रश्नकर्ता : मान लो कि अभी मुझे कोई आदमी परेशान करता है और मुझे दुःख होता है, तो यह जो दुःख मुझे होता है वह तो मेरे ही कर्म का फल है। पर वही व्यक्ति मुझे परेशान करता है इसलिए उसका पिछले जन्म में मेरे साथ कुछ ऐसा हिसाब बँधा होगा इसलिए वही मुझे परेशान करता है, वैसा कुछ है क्या?
दादाश्री : है न । सारा हिसाब है । जितना हिसाब होगा उतने समय तक दुःख देगा। दो का हिसाब हो तो दो बार देगा, तीन का हिसाब हो तो तीन बार देगा। यह मिर्ची दु:ख नहीं देती?
प्रश्नकर्ता: देती है ।
दादाश्री : मुँह में जलन होती है, नहीं? ऐसा है यह सब। खुद परेशान नहीं करता, पुद्गल करता है और हम समझते हैं कि यह वह कर रहा है। वह गुनाह है वापिस । पुद्गल दुःख देता है। मिर्ची दु:ख देती है, तब फिर कहाँ डाल देता है उसे? !
मिरची किसी दिन दुःख दे उससे हमें समझ जाना है कि भाई इसमें दु:खी होनेवाले का दोष है। मिर्ची तो अपने स्वभाव में ही है।