Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 53
________________ ४० कर्म का विज्ञान है, सभी को, महावीर प्रभु भी भुगतते थे। भगवान महावीर को तो देवलोग परेशान करते थे, वे भी भुगतते थे। बड़े-बड़े देवलोग खटमल डालते थे। प्रश्नकर्ता : वह उन्हें प्रारब्ध भुगतना पड़ा न? दादाश्री : कोई चारा ही नहीं न! वे खुद समझते थे कि ये देवलोग कर रहे हैं, फिर भी प्रारब्ध मेरा है। कौन-से कर्म से देह को दुःख? प्रश्नकर्ता : कौन-से कर्मों के आधार पर शरीर के रोग होते हैं? दादाश्री : लूला-लँगड़ा हो जाता है न! हाँ, वह सब क्या हुआ है? वह किसका फल है? वह हम कान का दुरुपयोग करें तो कान का नुकसान हो जाता है। आँखों का दुरुपयोग करें तो आँखें चली जाती है, नाक का दुरुपयोग करें तो नाक चली जाती है, जीभ का दुरुपयोग करें तो जीभ खराब हो जाती है, दिमाग़ का दुरुपयोग करें तो दिमाग़ खराब हो जाता है, पैर का दुरुपयोग करें तो पैर टूट जाता है, हाथ का दुरुपयोग करें तो हाथ टूट जाता है। यानी जिसका दुरुपयोग करें, वैसा फल भुगतना पड़ता है, यहाँ पर। निर्दोष बच्चों को भुगतना क्यों? प्रश्नकर्ता : कईबार ऐसा देखने में आया है कि छोटे बच्चे जन्म लेते हैं, तब से ही अपंग और ऐसे होते हैं। अपंग होते हैं। कुछ छोटे बच्चे कुतुबमीनार और हिमालय-दर्शन की दुर्घटना में मर जाते हैं। तो इन छोटेछोटे बच्चों ने क्या पाप किया होगा, कि उन्हें ऐसा होता है? दादाश्री : पाप किया हुआ ही था, उसका हिसाब चुक गया। इसलिए डेढ़ वर्ष का हुआ, माँ-बाप के साथ का सारा हिसाब पूरा हुआ, इसलिए चला गया। हिसाब चुका देना चाहिए। यह हिसाब चुकाने के लिए आते हैं। प्रश्नकर्ता : माँ-बाप के किए हुए दुष्कृत्य का फल देने के लिए

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