Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 56
________________ कर्म का विज्ञान ४३ की शक्ति नहीं है, अब वापिस पेमेन्ट करने की, तो वह चखना बंद कर दो। बाक़ी, ये लोनवाले सुख हैं सारे। किसी भी प्रकार का सुख वह लोन पर लिया हुआ है। पुण्य का फल सुख, परन्तु सुख भी लोनवाला और पाप का फल दुःख, दुःख भी लोनवाला। अर्थात् यह सारा लोनवाला है। इसलिए सौदा नहीं करना हो तो मत करना। इसलिए पुण्य और पाप हेय (त्याज्य) माने गए हैं। प्रश्नकर्ता : यह पहले दिया हआ हो और अभी वापिस लेते हैं. इसलिए हिसाब चुक गया। यानी उसे तो लोन पर लिया हुआ नहीं कहा जाएगा न? दादाश्री : अभी जो सुख चखते हो वे सारे वापिस आए हुए नहीं हैं, परन्तु यदि ये सभी चखते हो, तो पेमेन्ट करना पड़ेगा। अब पेमेन्ट किस तरह करना पड़ेगा? अच्छा आम खाया, तो उस दिन खुश हो गया और सुख उत्पन्न हुआ हमें। आनंद में दिन गुज़रा। परन्तु दूसरी बार आम खराब आएगा, तो उतना ही दुःख आएगा। परन्तु यदि इसमें सुख नहीं लो, तो वह दु:ख नहीं आएगा। प्रश्नकर्ता : उसमें मूर्छा नहीं हो तो? दादाश्री : तो फिर आम खाने में हर्ज नहीं है। साधो सास के साथ सुमेल प्रश्नकर्ता : सास के साथ मेरा बहुत टकराव होता है, उससे किस तरह छूढूँ? दादाश्री : एक-एक कर्म से मुक्ति होनी चाहिए। सास परेशान करे तब हर एक बार कर्म से मुक्ति मिलनी चाहिए। तो उसके लिए हमें क्या करना चाहिए? सास को निर्दोष देखना चाहिए, कि सास का तो क्या दोष? मेरे कर्म का उदय है, इसलिए वे मिले हैं। वे तो बेचारे निमित्त हैं। तो उस कर्म से मुक्ति हुई और यदि सास का दोष देखा तो कर्म बढ़े, फिर

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