Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 59
________________ ४६ कर्म का विज्ञान उस साँपिन के साथ! तो वह खुद साँप नहीं है मुआ? ऐसे ही साँपिन आती है कोई? साँप हो तभी साँपिन आती है न? प्रश्नकर्ता : उसके कर्म में लिखा होगा इसलिए उसे भुगतना ही पड़ा, इसलिए वह काटती है, उसमें पत्नी की भूल नहीं है! दादाश्री : बस । यानी कि ये कर्म के भुगतान हैं सारे। इसलिए ऐसी वाइफ मिल जाती है, ऐसा पति मिल जाता है। सास ऐसी मिल जाती हैं। नहीं तो इस दुनिया में कितनी अच्छी सास होती है। पति कैसे अच्छे होते हैं! कितनी अच्छी पत्नियाँ होती हैं, और हमें ही ऐसे टेढ़े क्यों मिले? यह तो पत्नी के साथ झगड़ा करता रहता है। अरे, तेरे कर्म का दोष है। अर्थात् हमारे लोग निमित्त को काटने दौड़ते हैं। पत्नी, वह निमित्त है। निमित्त को किसलिए काटते हो? निमित्त को काटने दौड़ता है, उसमें भला होता है कभी? उल्टी गतियों में जाता है फिर। यह तो लोगों की क्या गति होनेवाली है वह कहते नहीं है इसलएि डरते नहीं। यदि कह दें न कि चार पैर और ऊपर से पूँछ मिलेगी, तो अभी सीधे हो जाएंगे। प्रश्नकर्ता : उसमें किसका कर्म खराब समझें? दोनों पति-पत्नी लड़ते-झगड़ते हों, उसमें? दादाश्री : दोनों में से जो उकता जाए, उसका। प्रश्नकर्ता : तब उनमें से तो कोई ऊबता ही नहीं, वे तो लड़ते ही रहते हैं। दादाश्री : तो दोनों का एक सा। नासमझी से सब होता है। प्रश्नकर्ता : और वह समझ में आ जाए तो दुःख ही नहीं है न कुछ! दादाश्री : उसे समझें तो कोई दुःख ही नहीं है। यह तो ऐसा है, एक लड़का कंकड़ मारता है तो फिर उसे मारने दौड़ता है और गुस्सा हो जाता है एकदम। गुस्सा हो जाता है या नहीं? और पहाड़ पर से कंकड़

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