Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 57
________________ ४४ कर्म का विज्ञान उसका तो कोई क्या करे? सामनेवाले के दोष दिखें, तो कर्म बँधते हैं और खुद के दोष दिखें तो कर्म छूटते हैं। अपना कर्म बँधे नहीं उस तरह हमें रहना चाहिए, इस दुनिया से दूर रहना चाहिए। ये कर्म बाँधे थे, इसलिए तो ये मिले हैं। ये अपने घर में कौन इकट्ठे हुए हैं? कर्म के हिसाब बँधे हुए हैं, वे ही सब इकट्ठे हुए हैं और फिर हमें बाँधकर मारते भी हैं! हमने निश्चित किया हो कि मुझे इसके साथ बोलना नहीं है, फिर भी सामनेवाला मुँह में उँगलियाँ डालकर बुलवाता रहता है। अरे, उँगली डालकर किसलिए बुलवाता है? उसका नाम बैर! सारे पूर्व के बैर! किसी जगह पर देखा है ऐसा? प्रश्नकर्ता : सब ओर वही दिखता है न! दादाश्री : इसीलिए मैं कहता हूँ न, कि वहाँ से हट जाओ और मेरे पास आ जाओ। यह जो मैंने पाया है वह आपको दे दूँ, आपका काम हो जाएगा और छुटकारा हो जाएगा। बाक़ी, छुटकारा होगा नहीं। हम किसीके दोष नहीं निकालते, परन्तु ध्यान में रखते हैं कि देखो यह दुनिया क्या है? सभी तरह से इस दुनिया को मैंने देखा है। बहुत तरह से देखा है। कोई दोषित दिखता है, वह अभी तक अपनी भूल है। कभी न कभी निर्दोष तो देखना ही पड़ेगा न? अपने हिसाब के कारण ही है यह सब। इतना थोड़ा-सा समझ जाओ न, तो भी बहुत काम आएगा। जहाँ अपना प्रगाढ़ हो वहाँ, हमारे प्रगाढ़ कर्मों का उदय आता है और वह अपनी चिपकन छुड़वाने आते हैं। सारा अपना ही हिसाब है। किसीने गाली दी तो वह क्या अव्यवहार है? व्यवहार है। 'ज्ञानी' तो कोई गालियाँ दे तो खुद खुश होते हैं कि बंधन से मुक्त हुए। जब कि अज्ञानी धक्के मारता है और नया कर्म बाँधता है। सामनेवाला गालियाँ देता है, वह तो अपने ही कर्मों का उदय है। सामनेवाला तो निमित्त मात्र है, वैसी जागृति रहे तो नया कर्म नहीं बँधता। हर एक कर्म उसकी निर्जरा का निमित्त लेकर आया हुआ होता है। किस-किसके निमित्त से निर्जरा होगी, वह निश्चित होता है। उदयकर्म में राग-द्वेष नहीं करें, उसका नाम धर्म।

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