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कर्म का विज्ञान
नहीं और इस जन्म में ही कर्म का फल मिल जाता है । इस जन्म में ही फल मिले बगैर रहता नहीं है । ऐसा है न, परोक्ष कर्म का फल अगले जन्म में मिलता है और प्रत्यक्ष का फल इस जन्म में मिलता है।
प्रश्नकर्ता : परोक्ष शब्द का अर्थ क्या है?
दादाश्री : जिसका हमें पता नहीं चलता वह कर्म ।
प्रश्नकर्ता : किसी व्यक्ति का दस लाख रुपये का नुकसान करने का भाव मैंने किया हो तो फिर मुझे वापिस वैसा ही नुकसान मिलेगा?
दादाश्री : नहीं, नुकसान नहीं । वह तो दूसरे रूप में, आपको उतना ही दुःख होगा। जितना दुःख उसे आपने दिया उतना ही दुःख आपको होगा । फिर बेटा पैसे खर्च कर दे और दुःखी करे। या और किसी भी तरह से, परन्तु उतना ही दुःख होगा आपको | वह सारा यह हिसाब नहीं है, बाहर का हिसाब नहीं है। इसलिए यहाँ ये सब भिखारी बोलते हैं न, रास्ते में एक आदमी बोल रहा था, 'यह जो हम भीख माँग रहे हैं, वह हमने दिया है, वही आप हमें वापिस देते हो' खुला बोलता है वह तो । 'आप देते हो, वह हमने दिया हुआ है वही देते हो और नहीं तो हम आपको देंगे' कहता है। दोनों में से एक तो होगा ! नहीं, ऐसा नहीं है । आपने किसीके दिल को ठंडक पहुँचाई तो आपके दिल को ठंडक पहुँचेगी। आपने उसका दिल दुःखाया तो आपका दुःखेगा, बस । ये सभी कर्म अंत में राग-द्वेष में जाते हैं। राग-द्वेष का फल मिलता है । राग का फल सुख और द्वेष का फल दुःख मिलेगा।
प्रश्नकर्ता : यह जो आपने कहा न कि राग का फल सुख और द्वेष का फल दुःख तो यह परोक्ष फल की बात है या प्रत्यक्ष फल की ? दादाश्री : प्रत्यक्ष ही है सिर्फ । ऐसा है न, राग से पुण्य बँधता है और पुण्य से लक्ष्मी मिली। अब लक्ष्मी मिली परन्तु खर्च होते समय वापिस दुःख देकर जाती है, इसलिए ये सभी सुख जो आप लेते हो, वे लोन पर लिए हुए सुख हैं । इसलिए यदि फिर पेमेन्ट करना हो तो ही लेना यह सुख। हाँ, तो ही सुख चखना, नहीं तो चखना मत। अब आपमें चुकाने