Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 51
________________ कर्म का विज्ञान दादाश्री : कोई कुछ ऐसे पागल नहीं हैं कि यों ही माफ़ कर दे। आपसे अनजाने में कोई व्यक्ति मर गया । कोई कुछ बेकार नहीं बैठा कि माफ़ करने आए। अब अनजाने में अँगारों में हाथ पड़े तो क्या होगा ? प्रश्नकर्ता : जल जाएँगे । ३८ T दादाश्री : तुरन्त फल ! अनजाने में करो या जान- -बूझकर करो प्रश्नकर्ता : अनजाने में की गई भूलों को इस तरह भुगतना पड़ता है, तो जानने के बाद कितना भुगतना पड़ेगा ? दादाश्री : हाँ, इसलिए वही मैं आपको समझाता हूँ कि अनजाने में किए गए कर्म किस तरह भुगतते हैं? तब कहे, एक आदमी ने बहुत पुण्यकर्म किए हों, राजा बनने के पुण्यकर्म किए हों, पर अनजाने में किए हों, समझकर नहीं। लोगों को देख-देखकर वैसे कर्म खुद ने भी किए। वह फिर समझे बिना राजा बनता है, उस तरह के कर्म बाँधता है। अब वह पाँच वर्ष की उम्र में राजगद्दी पर आता है, फादर ऑफ हो गए इसलिए । और ग्यारह वर्ष की उम्र तक, यानी उसे छह वर्ष तक राज्य करना था, इसलिए ग्यारहवें वर्ष में गद्दी पर से उतर गया । अब दूसरे व्यक्ति को जो २८ वर्ष में राजा बना और ३४ में वर्ष में राज्य छूट गया । उनमें से किसने अधिक सुख भोगा? छह वर्ष दोनों को राज्य मिला। प्रश्नकर्ता : जो २८वें वर्ष में आया और ३४वें वर्ष में गया उसने। दादाश्री : उसने जानते हुए पुण्य बाँधा था, इसलिए यह जानते हुए भोगा। और उस बच्चे ने अनजाने में पुण्य किया था, वह अनजाने में भोगा । इस तरह अनजाने में पाप बाँधो तो अनजाने में भुगत लिया जाता है और अनजाने में पुण्य करो तो अनजाने में भुगत लिया जाता है। मज़ा नहीं आता । समझ में आता है न? अनजाने में किए हुए पाप के बारे में मैं आपको समझाऊँ। इस तरफ दो तिलचिट्टे जा रहे थे, बड़े-बड़े तिलचट्टे और इस तरफ दो मित्र जा रहे थे। तब एक मित्र का पैर तिलचट्टे पर पड़ा, और वह कुचला

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