Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 49
________________ कर्म का विज्ञान वेदांत की भाषा में, होटल में खाने के लिए आकर्षित होता है वह पूर्व में बाँधे हुए संचित कर्म के आधार पर है, अभी भीतर बिल्कुल ना है फिर भी होटल में जाकर खा आता है, वह प्रारब्ध कर्म और उसका फिर वापिस इस जन्म में ही परिणाम आता है और मरोड़ हो जाते हैं वह क्रियमाण कर्म। होटल में खाता है तब मज़ा आए, उस समय भी बीज डालता है और मरोड़ होते हैं, तब भोगते समय भी फिर से बीज डालता है। इस तरह कर्मफल के समय और कर्मफल परिणाम के समय दो बीज डालता संचित, प्रारब्ध और क्रियमाण कर्म प्रश्नकर्ता : वह सब पूर्वजन्म के संचितकर्म पर आधारित है? दादाश्री : ऐसा है न, संचित कर्म वगैरह सारे शब्द समझने की ज़रूरत है। यानी संचितकर्म, कॉज़ेज़ हैं और प्रारब्ध कर्म इन संचित कर्मों का इफेक्ट है और इफेक्ट का फल तुरन्त ही मिल जाता है, वह क्रियमाण कर्म। संचित कर्म का फल पचास-साठ-सौ वर्ष के बाद उसका काल परिपक्व हो तब मिलता है। संचित कर्म का यह फल है। संचितकर्म फल देते समय संचित नहीं कहलाता। फल देते समय प्रारब्धकर्म कहलाता है। वही के वही संचित कर्म जब फल देने के लिए तैयार होते हैं, तब वे प्रारब्ध कर्म कहलाते हैं। संचित अर्थात् पेटी (संदूक) में रखी हुई गड्डियाँ । वे गड्डियाँ यदि थोड़ा बाहर निकालें, वह प्रारब्ध। यानी प्रारब्ध का अर्थ क्या है कि जो फल देने को सम्मुख हुआ वह प्रारब्ध। और फल देने के लिए सम्मुख नहीं हुआ, अभी तो कितने ही काल के बाद फल देगा, तब तक वे संचित हैं सारे। संचित पड़े रहते हैं सारे। धीरे-धीरे, जैसे-जैसे हल आता जाता है, वैसेवैसे फल देते हैं। और क्रियमाण तो आँखों से दिखते हैं। पाँच इन्द्रियों से अनुभव में

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