Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 48
________________ कर्म का विज्ञान तब यहाँ के भ्रांतिवाले को ऐसा लगता है कि यह काम किया इसलिए ऐसा हुआ। भ्रांतिवाले ऐसा समझते हैं कि यहाँ कर्म बाँधते हैं और यहीं भोगते हैं। ऐसा समझते हैं। परन्तु यह खोजबीन नहीं करते कि खुद को नहीं जाना हो, फिर भी किस तरह जाता है? उसे नहीं जाना है फिर भी किस प्रकार, किस नियम से वह जाता है, वह हिसाब है। तब हम और अधिक सिखाते हैं कि इन बच्चों को मारना मत बिना बात के, लेकिन फिर से ऐसा भाव नहीं करे, वैसा करो। फिर से योजना नहीं करे, वैसा करो। चोरी खराब है, होटल में खाना खराब है.... ऐसा उसे ज्ञान उत्पन्न हो, ऐसा करो, ताकि फिर से अगले जन्म में ऐसा नहीं हो। यह तो मारते रहते हैं और बेटे से कहेंगे, 'देख! नहीं जाना है तुझे', तो उसका मन उल्टा चलता है, 'भले ही ये कहें, हम तो जाएँगे, बस।' बल्कि हठ पकड़ता है और उससे ही ये कर्म उल्टे होते हैं न! माँ-बाप उल्टा करवाते हैं। प्रश्नकर्ता : पहले जो भाव किए थे, इसलिए होटल में गया, अब होटल में गया, फिर वहाँ पर खाया और फिर मरोड़ हो गए, यह सब डिस्चार्ज है? दादाश्री : वह होटल में गया, वह डिस्चार्ज है और वे मरोड़ हो गए, वह भी डिस्चार्ज है। डिस्चार्ज खुद के बस में नहीं रहते, कंट्रोल नहीं रहता, आउट ऑफ कंट्रोल हो जाते हैं। अब एक्ज़ेक्ट कर्म की थियरी किसे कहते हैं, ऐसा यदि समझे, तो वह मनुष्य पुरुषार्थ धर्म को समझ सकेगा। इस जगत् के लोग जिसे कर्म कहते हैं, उसे कर्म की थ्योरी कर्मफल कहती है। होटल में खाने का भाव होता है, पूर्वजन्म में कर्म बाँधा था, उसके आधार पर खाता है। वहाँ यह कर्म कहलाता है। उस कर्म के आधार पर इस जन्म में वह बार-बार होटल में खाता रहता है। वह कर्मफल आया कहलाता है, और ये मरोड़ हुए, उसे जगत् के लोग कर्मफल आया ऐसा मानते हैं, जब कि कर्म की थ्योरी क्या कहती है, ये मरोड़ हुए, वह कर्मफल का परिणाम आया।

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