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कर्म का विज्ञान
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गया और दूसरे मित्र ने तिलचिट्टा देखा और उसे मसलकर मार दिया । दोनों ने क्या काम किया?
प्रश्नकर्ता : तिलचट्टे को मारा ।
दादाश्री : दोनों खूनी माने जाएँगे, कुदरत के वहाँ । उन तिलचिट्टों के परिवारवालों ने शिकायत की कि हम दोनों के पति को इन लड़कों ने मार दिया है। दोनों का गुनाह एक-सा है। दोनों गुनहगार, खूनी की तरह ही पकड़े गए। खून करने का तरीका अलग-अलग है, पर अब उसका फल देते समय दोनों को क्या फल मिलता है? तब कहें, दोनों को दो धौल और चार गालियाँ, ऐसी सजा हुई। अब वह जिसने यह सब अनजाने में किया था, वह व्यक्ति दूसरे जन्म में मज़दूर बनता है, तो उसे किसीने दो धौल मार दीं और चार गालियाँ दे दीं तो थोड़ी ही दूर जाकर वे उसने झाड़ दीं और दूसरा, अगले जन्म में गाँव का मुखिया था, बहुत बड़ा, अच्छे से अच्छा आदमी। उसे किसीने दो धौल मारीं और चार गालियाँ दीं, तो कितने ही दिनों तक वह सोया नहीं । कितने दिन भोगा ! इसने तो जानबूझकर मारा था, मज़दूर ने अनजाने में किया था । इसीलिए सोच-समझकर करना यह सब। जो करोगे न, वह ज़िम्मेदारी खुद की ही है। यू आर होल एन्ड सोल रिस्पोन्सिबल । गॉड इज़ नोट रिस्पोन्सिबल एट ऑल। (आप ही संपूर्ण जिम्मेदार हो, भगवान बिल्कुल भी जिम्मेदार नहीं हैं ।)
प्रारब्ध भुगतने पर ही छुटकारा
प्रश्नकर्ता : मुख्य तो अपने ही कर्म बाधक है?
दादाश्री : और कौन तब ! और कोई करता नहीं है। बाहरवाला कोई करता नहीं है। आपके ही कर्म परेशान करते हैं आपको । समझदार वाइफ लाए और फिर पागल हो जाती है । तो वह किसीने कर दी ? पति केही कर्म के उदय से पागल हो जाती है । इसलिए हमें मन में यह समझ जाना चाहिए कि मेरी ही गलती हैं, मेरे ही हिसाब हैं, और मुझे चुका देने हैं हर किसीको। आ फँसे भाई, आ फँसे हैं ।
खुद को भुगते बिना छुटकारा नहीं है। प्रारब्ध हमें भी भुगतना पड़ता