Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 15
________________ कर्म का विज्ञान जाते हैं। और तुरन्त ही वहाँ जन्म मिलता है। अच्छे कर्म हों तो अच्छी ही जगह पर जन्म होता है, खराब कर्म हों तो खराब जगह पर होता है। कर्म का सिद्धांत क्या? प्रश्नकर्ता : कर्म की परिभाषा क्या है? दादाश्री : कोई भी कार्य करो, उसे 'मैं करता हूँ' ऐसा आधार दो, वह कर्म की परिभाषा है। 'मैं करता हूँ' ऐसा आधार दें, उसे 'कर्म बाँधा' कहा जाता है। 'मैं नहीं करता' और 'कौन करता है' वह जान लो, तो इसे निराधार करते हो न, तब कर्म गिर जाता है। प्रश्नकर्ता : कर्म का सिद्धांत यानी क्या? दादाश्री : तू बावड़ी में अंदर जाकर बोले कि 'तू चोर है' तब बावड़ी क्या बोलेगी? प्रश्नकर्ता : 'तू चोर है।' ऐसे हमारे बोले हुए की प्रतिध्वनि आती दादाश्री : बस, बस। यदि तुझे यह पसंद नहीं हो, तो तू कहना कि 'तू बादशाह है।' तब वह तुझे 'बादशाह' कहेगी। तुझे पसंद हो, वैसा कहना, यह कर्म का सिद्धांत ! तुझे वकालत पसंद हो तो वकालत कर। डॉक्टरी पसंद हो तो डॉक्टरी कर। कर्म अर्थात् एक्शन। रिएक्शन अर्थात् क्या? वह प्रतिध्वनि है। रिएक्शन प्रतिध्वनिवाला है। उसका फल आए बगैर रहता नहीं। वह बावड़ी क्या कहती है? कि यह पूरा जगत् अपना ही प्रोजेक्ट है। जिसे आप कर्म कहते थे न, वह प्रोजेक्ट है। प्रश्नकर्ता : कर्म का सिद्धांत है या नहीं? दादाश्री : पूरा जगत् कर्म का सिद्धांत ही है, दूसरा कुछ है ही नहीं। और आपकी ही जोखिमदारी से बंधन है। यह सारा प्रोजेक्शन आपका ही है। यह देह भी आपने ही गढ़ा है। आपको जो-जो मिलता है, वह सारा आपका ही गढ़ा हुआ है। उसमें दूसरे किसीका हाथ ही नहीं। होल एन्ड

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