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कर्म का विज्ञान
करता है, अहंकार करता है', अब उसका फल यहीं के यहीं ही भुगतना पड़ता है। मान का फल यहीं के यहीं क्या आता है कि अपकीर्ति फैलती है, अपयश फैलता है, वह यहीं पर भुगतना पड़ता है। ये मान करते हैं, उस समय यदि मन में ऐसा हो कि यह गलत हो रहा है, ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें मान विलय करने की ज़रूरत है, ऐसा भाव हो तो वह नया कर्म बाँधता है। उसके कारण से आनेवाले जन्म में फिर मान कम हो जाता है।
कर्म की थियरी ऐसी है। गलत होते समय भीतर भाव बदल जाएँ तो नया कर्म वैसा बँधता है। और यदि गलत करे और ऊपर से खुश हो कि, 'ऐसा ही करने जैसा है' तो उससे फिर नया कर्म मज़बूत होता जाता है, निकाचित हो जाता है। उसे फिर भुगतना ही पड़ेगा! पूरा साइन्स ही समझने जैसा है। वीतरागों का विज्ञान बहुत गुह्य है।
... या इस जन्म का अगले जन्म में? प्रश्नकर्ता : तो इस जन्म में किए हुए कर्मों का फल क्या अगले जन्म में मिल सकता है?
दादाश्री : हाँ, इस जन्म में नहीं मिलता।
प्रश्नकर्ता : तो अभी जो हम भुगत रहे हैं, वह पिछले जन्म का फल है?
दादाश्री : हाँ, पिछले जन्म का फल है और साथ-साथ नये कर्म आनेवाले जन्म के लिए बँध रहे हैं। इसलिए नये कर्म आपको अच्छे करने चाहिए। यह तो बिगड़ा है पर आनेवाला नहीं बिगड़े, इतना देखते रहना है।
प्रश्नकर्ता : अभी कलियुग चल रहा है, अभी मनुष्य अच्छे कर्म तो कर नहीं सकता, कलियुग के प्रभाव से।
दादाश्री : अच्छे कर्मों की ज़रूरत नहीं है।