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कर्म का विज्ञान
ही मिल जाएगा। यह साइन्स नये ही प्रकार का है। यह तो अक्रम विज्ञान है। जिससे इन लोगों को हर प्रकार से फेसीलिटी (सहूलियत) हो गई है, बीवी को छोड़कर थोड़े ही भाग सकते हैं? अरे बीवी को छोड़कर भाग जाएँ और अपना मोक्ष हो, ऐसा हो सकता है क्या? किसीको दुःख देकर अपना मोक्ष हो, ऐसा संभव है क्या?
___ इसलिए बीवी-बच्चों के प्रति सभी फर्ज निभाना और पत्नी जो भी ‘भोजन' दे वह चैन से खाओ, वह सब स्थूल है। यह समझ जाना। स्थूल के पीछे आपका अभिप्राय ऐसा नहीं रहना चाहिए कि जिससे सूक्ष्म में चार्ज हो। इसलिए मैंने पाँच वाक्य आपको आज्ञा के रूप में दिए हैं। भीतर ऐसा अभिप्राय नहीं रहना चाहिए कि यह करेक्ट है, मैं जो करता हूँ, जो भोगता हूँ, वह करेक्ट है। ऐसा अभिप्राय नहीं होना चाहिए। बस इतना ही आपका अभिप्राय बदला कि सबकुछ बदल गया।
इस तरह मोड़ो बच्चों को बच्चे में खराब गुण हों तो माँ-बाप उन्हें डाँटते हैं और कहते फिरते हैं कि, 'मेरा बेटा तो ऐसा है, नालायक है, चोर है।' अरे, वह ऐसा करता है, उस करे हुए को रख न एक तरफ। पर अभी उसके भाव बदल न! उसके भीतर के अभिप्राय बदल न! उसके भाव कैसे बदलने, वह माँबाप को आता नहीं है। क्योंकि सर्टिफाइड माँ-बाप नहीं हैं, और माँ-बाप बन बैठे हैं! बच्चे को चोरी की बुरी आदत पड़ गई हो तो माँ-बाप उसे डाँटते रहते हैं, मारते रहते हैं। इस तरह माँ-बाप एक्सेस (ज़रूरत से ज़्यादा) बोलते हैं हमेशा, एक्सेस बोला हुआ हेल्प नहीं करता। इसलिए बेटा क्या करता है? मन में पक्का करता है कि, 'भले ही बोलते रहें। मैं तो ऐसा करूँगा ही।' यानी इस बेटे को माँ-बाप और अधिक चोर बनाते हैं। द्वापर
और त्रेता और सत्युग में जो हथियार थे, उनका आज कलियुग में लोग उपयोग करने लगे हैं। बेटे को बदलने का तरीका अलग है। उसके भाव बदलने हैं। उस पर प्रेम से हाथ फेरकर प्यार से कहना कि, 'आ बेटे, भले ही तेरी माँ चिल्लाए, वह चिल्लाए, पर तूने इस तरह किसीकी चोरी की, वैसे कोई तेरी जेब में से चोरी करे तो तुझे सुख लगेगा? उस समय