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कर्म का विज्ञान
अगले जन्म का सूक्ष्म कर्म नहीं है। यह जो करता है, उस स्थूल कर्म का यश उसे यहीं पर मिल जाता है।
क्रिया नहीं पर ध्यान से चार्जिंग आचार्य महाराज प्रतिक्रमण करते हैं, सामायिक करते हैं, व्याख्यान देते हैं, प्रवचन देते हैं, पर वह तो उनका आचार है, वह स्थूल कर्म है। पर भीतर क्या है, वह देखना है। भीतर जो चार्ज होता है, वह 'वहाँ' पर काम आएगा। अभी जिस आचार का पालन करते हैं, वह डिस्चार्ज है। पूरा बाह्याचार ही डिस्चार्ज स्वरूप है। वहाँ ये लोग कहते हैं कि, 'मैंने सामायिक की, ध्यान किया, दान दिया।' तो उसका यश तुझे यहीं पर मिल जाएगा। उसमें आनेवाले जन्म का क्या लेना-देना? भगवान ऐसी कोई कच्ची माया नहीं हैं कि तेरे ऐसे घोटाले को चलने दें। बाहर सामायिक करता है और भीतर न जाने क्या करता है।
एक सेठ सामायिक करने बैठे थे, तब बाहर किसीने दरवाज़ा खटखटाया, सेठानी ने जाकर दरवाज़ा खोला। एक भाई आए थे, उन्होंने पूछा, 'सेठ कहाँ गए हैं?' तब सेठानी ने जवाब दिया, 'उकरडे (कूड़ाकरकट फेंकने का स्थान)। सेठ ने अंदर बैठे-बैठे यह सुना और अंदर जाँच की तो वास्तव में वे उकरडे में ही गया हुआ था! अंदर तो खराब विचार ही चल रहे थे, वे सूक्ष्म कर्म और बाहर सामायिक कर रहे थे, वह स्थूल कर्म। भगवान ऐसी पोल (घोटाला, ग़फलत, अंधेर) नहीं चलने देते। अंदर सामायिक रहता हो और बाहर समायिक न भी हो तो उसका 'वहाँ' पर चलेगा। ये बाहर के दिखावे 'वहाँ' चलें ऐसे नहीं हैं।
भीतर बदलो भाव इस तरह स्थूलकर्म यानी तुझे एकदम गुस्सा आया, तब गुस्सा नहीं लाना फिर भी वह आ जाता है। ऐसा होता है या नहीं होता?
प्रश्नकर्ता : होता है। दादाश्री : वह गुस्सा आया, उसका फल यहीं पर तुरन्त मिल जाता