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कर्म का विज्ञान
प्रश्नकर्ता : तो किसकी ज़रूरत है? ।
दादाश्री : भीतर सद्भावना की ज़रूरत है। अच्छे कर्म तो प्रारब्ध अच्छा हो तो हो सकते हैं, नहीं तो नहीं हो सकते। पर अच्छी भावना तो हो सकती है, प्रारब्ध अच्छा नहीं हो तो भी।
बुरे कर्म का फल कब? प्रश्नकर्ता : अच्छे और बुरे कर्म के फल इसी जन्म में या अगले जन्म में भुगतना पड़ता है, तो वैसे जीव मोक्षगति को किस तरह प्राप्त करें?
दादाश्री : कर्मों के फल नुकसान नहीं करते। कर्म के बीज नुकसान करते हैं। मोक्ष में जाते हए कर्म बीज गिरने बंद हो गए तो कर्मफल उसे रुकावट नहीं डालते, कर्मबीज रुकावट डालते हैं। बीज किसलिए रुकावट डालते हैं? कि तूने डाले इसलिए इनका स्वाद तू लेकर जा, उसका फल चखकर जा। उन्हें चखे बिना नहीं जा सकता। यानी वे ही रुकावट डालते हैं, बाक़ी ये कर्मफल रुकावट नहीं डालते हैं। फल तो कहते हैं, 'तू अपनी तरह से खाकर चला जा।'
प्रश्नकर्ता : परन्तु आपश्री ने कहा था कि एक प्रतिशत भी कर्म किया हो तो वह भुगतना ही पड़ता है।
दादाश्री : हाँ, भुगतना ही पड़ता है। भुगते बगैर चलेगा नहीं। कर्म के फल भोगते हुए भी मोक्ष हो सकता है, ऐसा रास्ता होता है। परन्तु कर्म बाँधते समय मोक्ष नहीं होता। क्योंकि वे कर्म बाँध रहे हों तो अभी फल खाने के लिए रहना पड़ेगा न!
प्रश्नकर्ता : जो अच्छे-बुरे कर्म हम करते हैं, वे इसी जन्म में भुगतने होते हैं या फिर अगले जन्म में?
दादाश्री : लोग देखते हैं कि, 'इसने बुरा कर्म किया, इसने चोरी की, इसने लुच्चापन (बदमाशी) किया, इसने दगा दिया, वे सभी यहीं पर भुगतने हैं और उन कर्मों से ही भीतर राग-द्वेष उत्पन्न होते हैं। उनका फल अगले जन्म में भुगतना पड़ता है।'