Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 39
________________ २६ कर्म का विज्ञान मिलते-जुलते स्वभाववाले हों, तभी मिलते हैं। नहीं तो होता नहीं। केवलज्ञान में ही वह दिखे प्रश्नकर्ता : यह कर्म नया है या पुराना है, वह किस तरह दिखेगा? दादाश्री : कर्म किया या नहीं किया, यह तो किसीसे भी नहीं देखा जा सकता। वह तो भगवान, कि जिन्हें केवलज्ञान है, वे ही जान सकते हैं। इस जगत् में आपको जो कर्म दिखते हैं, उनमें एक राई जितना भी कर्म नया नहीं है। इन कर्मों के ज्ञाता-दृष्टा रहो तो नया कर्म नहीं बँधेगा और तन्मयाकार रहो तो नये कर्म बँधते हैं। आत्मज्ञानी होने के बाद ही कर्म नहीं बँधते। इस जगत् में आत्मा दिखता नहीं है, कर्म भी नहीं दिखते, परन्तु कर्मफल दिखते हैं। लोगों को, कर्मफल आते हैं उनमें 'टेस्ट' आता है, तब उनमें तन्मयाकार हो जाते हैं, उससे ही भुगतना पड़ता है। अभी मुए कहाँ से? प्रश्नकर्ता : बहुत बार ऐसा होता है कि हम अशुभ कर्म बाँध रहे हो और उस समय बाहर तो उदय शुभकर्म का होता है? । दादाश्री : हाँ, ऐसा होता है। अभी आपके शुभ कर्म का उदय हो पर भीतर अशुभ कर्म बाँध सकते हैं। आप दूसरे शहर से यहाँ सिटी में आए हों और रात को देर हो गई हो तो अंदर लगता है कि अब हम कहाँ सोएँगे? तो फिर आप कहते हो कि यहाँ मेरे एक मित्र रहते हैं, वहाँ हम चलें। इसलिए चार लोग वे और आप पाँचवे, साढ़े ग्यारह बजे उस मित्र के वहाँ जाकर दरवाज़ा खटखटाया। वे बोले 'कौन है?' तब आप कहो, 'मैं'। तब वह कहे, 'खोलता हूँ'। वह दरवाज़ा खोलकर फिर क्या कहता है हमें? पाँच व्यक्तियों को देखता है, हमें अकेले को नहीं देखता, चार-पाँच लोगों को देखता है,

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