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कर्म का विज्ञान सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' से जगत् चल रहा है, ऐसा कहते हैं। उसे गुजराती में कहा है कि 'व्यवस्थित शक्ति' जगत् चलाती है।
'व्यवस्थित शक्ति' और कर्म प्रश्नकर्ता : आप जो 'व्यवस्थित' कहते हैं, वह कर्म के अनुसार है?
दादाश्री : जगत् कहीं कर्म से नहीं चलता है। जगत् 'व्यवस्थित शक्ति' चलाती है। आपको यहाँ कौन लेकर आया? कर्म? नहीं। आपको 'व्यवस्थित' लेकर आया है। कर्म तो भीतर पड़ा हुआ था ही। वह कल क्यों नहीं लेकर आया और आज लेकर आया? 'व्यवस्थित' काल एकत्र कर देता है, भाव एकत्र कर देता है। सभी संयोग इकट्ठे हो गए, तब तू यहाँ आया। कर्म तो 'व्यवस्थित' का एक अंश है। यह तो संयोग मिल जाते हैं तब कहता है, 'मैंने किया' और संयोग नहीं मिलें तब?
फल मिलें ऑटोमेटिक प्रश्नकर्ता : कर्म का फल और कोई दे तो फिर वह कर्म ही हुआ?
दादाश्री : कर्म का फल और कोई देता ही नहीं। कर्म का फल देनेवाला कोई जन्मा ही नहीं। यहाँ पर सिर्फ खटमल मारने की दवाई पी जाए तो मर ही जाए, उसमें बीच में फल देनेवाले की कोई ज़रूरत नहीं
फल देनेवाला हो न, तब तो बहुत बड़ा ऑफिस बनाना पड़ता। यह तो साइन्टिफिक तरीके से चलता है। बीच में किसीकी ज़रूरत नहीं है! उसका कर्म परिपक्व होता है तब फल आकर खड़ा ही रहता है, खुद अपने आप ही। जैसे ये कच्चे आम अपने आप ही पक जाते हैं न! नहीं पकते?
प्रश्नकर्ता : हाँ, हाँ।
दादाश्री : आम के पेड़ पर नहीं पकते? हाँ, पेड़ पर पकते हैं न,, उसी तरह ये कर्म परिपक्व होते हैं। उनका टाइम आता है, तब पककर,