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कर्म का विज्ञान
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कर्म ऐसे होते हैं कि परिपक्व होने में देर लगती है। कुछ लोगों के पाँच सौ वर्षों में हज़ार - हज़ार वर्षों में परिपक्व होते हैं, फिर भी इसमें बहीखाते में नया ही होता है।
प्रश्नकर्ता : केरी फॉरवर्ड हो जाता है?
दादाश्री : हाँ, बहीखाते की बात आपको समझ में आई? पुराने बहीखाते का नये बहीखाते में आ जाता है और अब वह भाई नए बहीखाते में आ जाएगा। कुछ भी बाक़ी रहे बगैर । यानी कॉज़ेज़ के रूप में ये कर्म बँधते हैं, वे इफेक्टिव कब होते हैं? पचास-साठ - पचहत्तर वर्ष बीत जाएँ, तब फल देने के लिए इफेक्टिव होते हैं ।
इन सबका संचालक कौन?
प्रश्नकर्ता : तो यह सब चलाता कौन है ?
दादाश्री : यह सब तो, यह कर्म का नियम ऐसा है कि आप जो कर्म करते हो, उनके परिणाम अपने आप कुदरती रूप से आते हैं।
प्रश्नकर्ता : इन कर्मों के फल हमें भुगतने पड़ते हैं, वह कौन तय करता है? कौन भुगतवाता है ?
दादाश्री : तय करने की ज़रूरत ही नहीं है। कर्म 'इटसेल्फ' करते रहते हैं। अपने आप खुद ही हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : तो फिर कर्म के नियम को कौन चलाता है ?
दादाश्री : 2H और O इकट्ठे हो जाएँ तो बरसात हो जाती है, वह कर्म का नियम ।
प्रश्नकर्ता : परन्तु किसीने उसे किया होगा न, वह नियम?
दादाश्री : नियम कोई नहीं बनाता है । तब तो फिर मालिक ठहरेगा वापिस। किसीको करने की ज़रूरत नहीं है । इटसेल्फ पज़ल हो गया है और वह विज्ञान के नियम से होता है । उसे हम 'ओन्लि सायन्टिफिक