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कर्म का विज्ञान
इसलिए हमें क्या कहता है? 'वापिस जाओ' ऐसा कहता है? क्या कहता है?
'आइए, पधारिए! अपने यहाँ तो खानदानी लोग, 'आइए, पधारिए' कहकर बैठाते हैं।
प्रश्नकर्ता : वह ऐसा भी कहता है कि, 'कब आए' और 'कब जानेवाले हो?'
दादाश्री : नहीं, खानदानी ऐसा नहीं बोलते। वे 'आइए, पधारिए' करके बैठाते हैं, पर उसके मन में क्या चल रहा होता है? कि अभी कहाँ से मुए! वह कर्म। वैसा करने की ज़रूरत नहीं है। वे आए हैं, उनका हिसाब होगा तब तक रहेंगे। फिर चले जाएंगे। उसने जो यह अक्कलमंदी की कि, 'अभी कहाँ से मुए' वह कर्म बाँधा। अब वह कर्म बाँधा तब मुझे पूछना था कि “ऐसा हो जाता है मुझसे, तब क्या करूँ? तब मैं कहूँ कि, उस घड़ी कृष्ण भगवान को मानता हो, चाहे जिन्हें मानता हो, उनका नाम लेकर 'हे भगवान! मेरी भूल हो गई। ऐसा फिर नहीं करूँगा।' इस तरह माफ़ी माँगे तो मिट जाएगा।" बाँधा हुआ कर्म तुरन्त ही मिट जाएगा। जब तक चिट्ठी पोस्ट में नहीं डालें, तब तक उसे बदल सकते हैं। पोस्ट में चला गया यानी कि यह देह छूट गई, फिर बंध गया। देह छुटे उससे पहले हम वह सब मिटा दें तो मिट जाएगा। अब उसने एक कर्म तो बाँधा न?
अब वापिस फिर तुझे क्या कहता है? 'चंदूभाई इतनी इतनी...' क्या बोले 'इतनी' वे? यानी कॉफी या चाय कुछ नहीं बोलते, पर हम समझ जाते हैं कि चाय के लिए कह रहे हैं। पर वे 'इतनी थोड़ी-थोड़ी...' तब आप कहते हो, 'अभी रहने दो न चाय-वाय, अभी खिचड़ी-कढ़ी होगी तो चलेगा।' तब फिर अंदर उनकी पत्नी चिढ़ जाती है। उससे कर्म बँधते हैं सारे। अब उस घड़ी यह कुदरत का नियम है। वह हिसाब में आया है, तो उसके लिए भाव मत बिगाडना। इस प्रकार नियम में रहे और भले खिचड़ी और कढ़ी जो अपने पास हो, वह दे देना। मेहमान ऐसा नहीं कहते कि आप मिठाई खिलाइए। खिचड़ी-कढ़ी, सब्जी, जो हो वह परोसो। यह