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कर्म का विज्ञान वह इफेक्ट होता है। पर बिज़नेस करने के लिए कॉज़ेज़ तो करने पड़ते हैं न? तो बिज़नेस कर सकते हैं न?
दादाश्री : नहीं, कॉज़ेज़ में दूसरी कोई रिलेटिव वस्तु का उपयोग नहीं होता। बिज़नेस तो शरीर अच्छा हो, दिमाग़ अच्छा हो, सब हो, तब होता है न! सबके आधार पर जो होता है, वह इफेक्ट है और जो व्यक्ति सोते सोते 'इसका खराब होगा, ऐसा होगा', ऐसा करे वे सब कॉज़ेज़, क्योंकि उसमें आधार या किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है।
प्रश्नकर्ता : हम जो बिज़नेस करते हैं, तो वह इफेक्ट कहलाता
दादाश्री : इफेक्ट ही कहते हैं न! बिज़नेस, वह इफेक्ट ही है। परीक्षा का परिणाम आए, उसमें कुछ करना पड़ता है? परीक्षा में करना पड़ता है, वे कॉज़ेज़ कहलाते हैं। कुछ करना पड़े, वह भी परिणाम में कुछ करना पड़ता है?
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : उसी तरह इसमें कुछ करना नहीं पड़ता। वह सब होता ही रहता है। अपना शरीर काम में आता है और सब होता ही रहता है। कॉज़ में तो खुद को करना पड़ता है। कर्त्ताभाव है, वह कॉज़ है, बाक़ी सब इफेक्ट है। भोक्ताभाव, वह कॉज़ है।
प्रश्नकर्ता : जो भाव हैं, वे सभी कॉज़ेज़ हैं, ठीक।
दादाश्री : हाँ, जहाँ दूसरे किसीकी हेल्प की ज़रूरत नहीं है। आप खाना बनाओ फर्स्ट क्लास, वह सब इफेक्ट ही है, और उसमें आप भाव करो कि 'मैंने कितना अच्छा खाना बनाया, कितना अच्छा बनाया।' वह भाव आपका कॉज़ है। यदि भाव नहीं करो तो सब इफेक्ट ही है। सुना जा सके, देखा जा सके, वे सब इफेक्ट्स हैं। कॉज़ेज़ देखे नहीं जा सकते।
प्रश्नकर्ता : तो पाँच इन्द्रियों से जो कुछ होता है, वह इफेक्ट है?