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कर्म का विज्ञान
नहीं है। अंतर-भाव से कर्म चार्ज होता है। उसका फिर अगले जन्म में डिस्चार्ज होता है, उस समय वह 'इफेक्टिव' है। ये मन-वचन-काया तीनों इफेक्टिव हैं। इफेक्ट भोगते समय दूसरे नये कॉज़ेज़ उत्पन्न होते हैं। जो अगले जन्म में वापिस इफेक्टिव होते हैं। इस तरह कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट, इफेक्ट एन्ड कॉज़ेज़ ऐसा चक्र चलता ही रहता है, इसलिए फ़ॉरेन के साइन्टिस्टों को भी समझ में आता है कि भाई इस तरह पुनर्जन्म है। तब बहुत खुश हो जाते हैं कि इफेक्ट एन्ड कॉज़ेज़ हैं यह!
तो ये सब इफेक्ट हैं। आप वकालत करते हो, वह सब इफेक्ट है। इफेक्ट में अहंकार नहीं करना चाहिए कि 'मैंने किया।' इफेक्ट तो अपने आप ही आता है। यह पानी नीचे जाता है, वह ऐसे नहीं कहता कि, 'मैं जा रहा हूँ', वह समुद्र की तरफ चार सौ मील ऐसे-वैसे चलकर जाता ही है न! और मनुष्य तो किसीका केस (मुकदमा) जितवा दे तो 'मैंने कैसे जितवा दिया' कहता है। अब उसका उसने अहंकार किया, उससे कर्म बँधा, कॉज़ हुआ। उसका फल वापिस इफेक्ट में आएगा।
कारण-कार्य के रहस्य
इफेक्ट आप समझ गए? अपने आप होता ही रहे, वह इफेक्ट। हम परीक्षा देते हैं न, वह कॉज़ कहलाता है। फिर परिणाम की चिंता हमें नहीं करनी होती है। वह तो इफेक्ट है। यह जगत् पूरा इफेक्ट की चिंता करता है। वास्तव में तो कॉज़ के लिए चिंता करनी चाहिए!
यह विज्ञान तेरी समझ में आया? विज्ञान सैद्धांतिक होता है। अविरोधाभास होता है। तूने बिज़नेस किया और दो लाख कमाए, वह कॉज़ है या इफेक्ट?
प्रश्नकर्ता : कॉज़ेज़ हैं।
दादाश्री : किस तरह कॉज़ेज़ हैं, वह मुझे समझा? इच्छानुसार कर सकता है?
प्रश्नकर्ता : आप बिज़नेस करें और जो होनेवाला है वह होगा ही,