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कर्म का विज्ञान अंडा पहले या मुर्गी पहले। मुए, रख न इसे एक ओर। यहाँ से उस ओर रखकर दूसरी आगे की बात कर न! नहीं तो अंडा और मुर्गी बनना पड़ेगा। बार-बार उसे छोड़ेगा नहीं मुआ। जिसका समाधान नहीं हो, वह सभी गोल है। वह अपने लोग नहीं कहते, गोल-गोल बात करते हैं ये भाई।
प्रश्नकर्ता : फिर भी यह प्रश्न होता ही रहता है कि जन्म से पहले कर्म कहाँ से? चौरासी लाख फेरे शुरू हुए। यह पाप-पुण्य कहाँ से, कब से शुरू हुए?
दादाश्री : अनादि से। प्रश्नकर्ता : उसकी शुरूआत तो कुछ होगी न?
दादाश्री : जब से बुद्धि शुरू हुई न तब से शुरूआत और बुद्धि का एन्ड हो, वहाँ पूरा हो जाता है। समझ में आया न? बाक़ी है अनादि से!
प्रश्नकर्ता : यह जो बुद्धि है, वह किसने दी?
दादाश्री : देनेवाला है ही कौन? कोई भी ऊपरी है ही नहीं न! कोई है नहीं न, दूसरा कोई। कोई देनेवाला हो, तब तो ऊपरी ठहरा। ऊपरी ठहरा, इसलिए हमेशा वह हमारे सिर पर रहेगा। फिर मोक्ष होगा ही नहीं, दुनिया में। ऊपरी हो, वहाँ मोक्ष होता होगा?
प्रश्नकर्ता : परन्तु सबसे पहला कर्म कौन-सा हुआ? जिसके कारण यह शरीर मिला?
दादाश्री : यह शरीर तो किसीने दिया नहीं है। ये सभी छह तत्वों के इकट्ठे होने से, उनके ऐसे आमने-सामने जोइन्ट होने से 'उसे' ये सारी अवस्थाएँ उत्पन्न हुई हैं। वह शरीर मिला ही नहीं। यह तो आपको दिखता है वही भूल है। भ्रांति से दिखता है। यह भ्रांति जाए न, तो कुछ भी नहीं रहे। यह आप जो 'मैं चंदूभाई हूँ', ऐसा समझते हो, उससे यह खड़ा हुआ है सारा।