Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 20
________________ कर्म का विज्ञान भेद है और अपने यहाँ यह ज्ञान मिलने के बाद जीव-शिव का भेद गया। ‘कर्ता छूटे तो छूटे कर्म, ए छे महाभजननो मर्म!' चार्ज कब होता है कि, 'मैं चंदूभाई हूँ और यह मैंने किया।' यानी जो उल्टी मान्यता है उससे कर्म बँध गया। अब आत्मा का ज्ञान मिले तो 'आप' चंदूभाई नहीं हो। चंदूभाई तो व्यवहार से, निश्चय से वास्तव में नहीं हो और यह 'मैंने किया', वह व्यवहार से है। इसलिए कर्त्तापन मिट जाए तो कर्म फिर छूट जाते हैं, कर्म नहीं बँधते। 'मैं कर्त्ता नहीं' वह भान हुआ, वह श्रद्धा बैठी, तब से कर्म छूटे, कर्म बँधने से रुक गए। यानी चार्ज होना बंद हो गया। वह है महाभजन का मर्म । महाभजन किसे कहा जाता है? सर्व शास्त्रों के सार को महाभजन कहा जाता है। वह तो महाभजन का भी सार है। करे वही भुगते प्रश्नकर्ता : हमारे शास्त्र ऐसा कहते हैं कि हर एक को कर्म के अनुसार फल मिलता है! दादाश्री : वह तो खुद ही अपने लिए जिम्मेदार है। भगवान ने इसमें हाथ डाला ही नहीं। बाक़ी, इस जगत् में आप स्वतंत्र ही हो। ऊपरी (बॉस, वरिष्ठ मालिक) कौन है? आपको अन्डरहेन्ड की आदत है इसलिए आपको ऊपरी मिलते हैं, नहीं तो आपका कोई ऊपरी नहीं है और आपका कोई अन्डरहेन्ड नहीं है, ऐसा यह वर्ल्ड है! इसे तो समझने की ज़रूरत है, और कुछ है नहीं। पूरे वर्ल्ड में सब जगह घूम आया, ऐसी कोई जगह नहीं है कि जहाँ पर ऊपरीपन हो। भगवान नाम का आपका कोई ऊपरी है नहीं। आपके जोखिमदार आप खुद ही हो। पूरे वर्ल्ड के लोग मानते हैं कि जगत् भगवान ने बनाया। परन्तु जो पुनर्जन्म का सिद्धांत समझते हैं उनसे ऐसा नहीं माना जा सकता कि भगवान ने बनाया है। पुनर्जन्म अर्थात् क्या कि 'मैं करता

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