Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ १० कर्म का विज्ञान ही करने जाए तो ऐसा होगा ही नहीं। सहज प्रयत्न, सहज रूप से मिल जाए, तब काम हो जाता है। कर्म, ये संयोग हैं, और वियोगी उनका स्वभाव है। संबंध, आत्मा और कर्म के... प्रश्नकर्ता : तो आत्मा और कर्म, इनके बीच क्या संबंध है? दादाश्री : दोनों के बीच कर्त्तारूपी कड़ी नहीं हो तो दोनों अलग हो जाएँ। आत्मा, आत्मा की जगह पर और कर्म, कर्म की जगह पर अलग हो जाएँ। प्रश्नकर्ता : समझ में नहीं आया ठीक से। दादाश्री : कर्ता नहीं बने तो कर्म है नहीं। कर्ता है, तो कर्म है। कर्ता नहीं बनो न, और आप यह कार्य कर रहे हों न तो भी आपको कर्म नहीं बंधेगा। यह तो कर्त्तापद है आपको, 'मैंने किया।' इसलिए बँधा। प्रश्नकर्ता : तो कर्म ही कर्ता है? दादाश्री : 'कर्ता' वह कर्ता है। 'कर्म', वह कर्ता नहीं है। आप 'मैंने किया' कहते हो या 'कर्म ने किया' कहते हो? प्रश्नकर्ता : 'मैं करता हूँ' ऐसा तो भीतर रहता ही है न! 'मैंने किया' ऐसा ही कहते हैं। दादाश्री : हाँ, वह 'कर्ता', 'मैं करता हूँ' ऐसा कहते हो, इसलिए ही आप कर्ता बनते हो। बाक़ी 'कर्म' कर्ता नहीं है। 'आत्मा' भी कर्ता नहीं है। प्रश्नकर्ता : कर्म एक तरफ है और आत्मा दूसरी तरफ है। तो इन दोनों को अलग किस तरह करें? ___ दादाश्री : अलग ही हैं। यह कड़ी निकल जाए न तो, परन्तु यह तो कर्त्तापद की कड़ी ही है। इस कड़ी के कारण बँधा हुआ लगता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94