Book Title: Karma Ka Vignan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 21
________________ कर्म का विज्ञान हूँ और मैं भोगता हूँ। और मेरे ही कर्मों का फल भुगतता हूँ। इसमें भगवान की दख़ल है ही नहीं।' खुद जो कुछ करता है, खुद की ज़िम्मेदारी पर ही यह सब किया जाता है, किसकी ज़िम्मेदारी पर है यह? समझ में आया प्रश्नकर्ता : आज तक ऐसा समझता था कि भगवान की ज़िम्मेदारी है। दादाश्री : नहीं, खुद की ही ज़िम्मेदारी है! होल एन्ड सोल रिस्पोन्सिबिलिटी खुद की है, परन्तु उस आदमी को गोली क्यों मारी? वे रिस्पोन्सिबल थे, उसका यह फल मिला और वह मारनेवाला रिस्पोन्सिबल होगा, तब उसे उसका फल मिलेगा। उसका टाइम आएगा तब वह फल देगा। जैसे आज आम पेड़ पर लगा, तो आज के आज ही आम लाकर उसका रस नहीं निकाल सकते। वह तो टाइम हो जाए, बड़ी हो, पके, तब रस निकलता है। उसी तरह यह गोली लगी न, उससे पहले पककर तैयार होती है, तब लगती है। यों ही नहीं लगती। और मारनेवाले ने गोली मारी, उसको आज इतना छोटा-सा आम बना है, वह बड़ा होने के बाद पकेगा, उसके बाद उसका रस निकलेगा। कर्मबंधन, आत्मा को या देह को? प्रश्नकर्ता : तो फिर अब कर्मबंधन किसे होता है, आत्मा को या देह को? दादाश्री : यह देह तो खुद ही कर्म है। फिर दूसरा बंधन उसे कहाँ से होगा? यह तो जिसे बंधन लगता हो, जो जेल में बैठा हो, उसे बंधन है। जेल को बंधन होता है या जेल में बैठा हो उसे बंधन है? यानी यह देह तो जेल है और उसके अंदर बैठा है न उसे बंधन है। 'मैं बंधा हुआ हूँ, मैं देह हूँ, मैं चंदूभाई हूँ', मानता है, उसे बंधन है। प्रश्नकर्ता : यानी आप कहना चाहते हैं कि आत्मा देह के माध्यम

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