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( ग )
अशुद्ध पाठों को मूल ग्रंथों के अनुसार शुद्ध किया गया है । (४) तथा ग्रंथ की भाषा में रही हुई प्रेस की भूलों का सुधार किया गया है । इस के अतिरिक्त मूलग्रन्थ की भाषा में अन्य किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया गया । हां ! अनुस्वार के अनावश्यक प्रयोग को प्रस्तुत ग्रन्थ में स्थान नहीं दिया गया ।
आभार
प्रस्तुत पुस्तक के सम्पादन में समय की न्यूनता और कार्य की अधिकता को देख कर अपनी सहायता के लिये हम ने आरम्भ में श्री आत्मानंद जैन गुरुकुल के स्नातक प० रामकुमार जी और उन के बाद उक्त गुरुकुल के स्नातक (वर्तमान में अध्यापक ) पं० ईश्वरलाल जी को कष्ट दिया | उन दोनों सज्जनों ने इस कार्य में हमारी यथाशक्ति सहायता करने में किसी प्रकार की कमी नहीं की, अतः हम इन दोनों स्नातक सज्जनों के कृतज्ञ हैं ।
इन के अतिरिक्त हम मुनि श्री पुण्यविजय जी का भी पुण्य स्मरण किये बिना नहीं रह सकते, कि जिन्हों ने प्रस्तुत ग्रन्थ में आये हुए बहुत से प्राकृत पाठों के मूल स्थलों को बतलाकर हमें अनुगृहीत किया है ।
तथा भाई. सुन्दरदास जी ने इस सम्पादन कार्य में हमारी बड़ी भारी सहायता की है, तदर्थ हम इन के विशेष