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(ड) श्री आत्मान्द जैन महासभा की कार्यकारिणी समिति ने प्रस्तुत ग्रन्थ का नवीन संस्करण प्रकाशित करने का निर्णय किया, और उसे कम से कम मूल्य में वितीर्ण करने का भी निश्चय किया । तदनुसार इस के सम्पादन का कार्य हम दोनों को सौप दिया गया । हम ने भी समय की स्वल्पता, कार्य की अधिकता और अपनी स्वल्प योग्यता का कुछ भी विचार न करके केवल गुरुभाक्त के वशीभूत हो कर महासमा के आदेशानुसार पूर्वोक्त कार्य को अपने हाथ में लेने का साहस कर लिया। और उसी के भरोसे पर इस में प्रवृत्त हो गये।
हमारी कठिनाइयांइस कार्य में प्रवृत्त होने के बाद हम को जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, उन का ध्यान इस से पूर्व हमें विल्कुल नही था । एक तो हमारा प्रस्तुत ग्रथ का साधन्त अवलोकन न होने से उसे नवीन ढंग से सम्पादन करने के लिये जिस साधन सामग्री का संग्रह करना हमारे लिये आवश्यक था, वह न हो सका । दूसरे, समय बहुत कम होने से प्रस्तुत पुस्तक में प्रमाणरूप से उद्धृत किये गये प्राकृत और संस्कृत वाक्यों के मूलस्थल का पता लगाने में पूर्ण सफलता नहीं हुई । तीसरे. इधर पुस्तक का संशोधन करना और उधर उसे प्रेस में देना । इस बढ़ी हुई कार्य-व्यग्रता के कारण प्रस्तुत पुस्तक में आये हुए कठिन स्थलों पर नोट में टिप्पणी या परिशिष्ट में स्वतन्त्र विवेचन लिखने से हम वंचित रह गये हैं । एव समय के अधिक