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नदीके नाम रुद्रदामन के शिलालेखमें है। रेवंतगिरिरास में रेवंत, उज्जिल उज्जिंत, गिरनार - ये शब्द प्रयुक्त है।
जैन धर्म में तीर्थस्थानों का अति महत्व होने से गिरनार, शत्रुजय आदि तीर्थोंको केन्द्र में रखकर रास लिखे है। मंदिर निर्माण, जीर्णोद्धार, प्रतिमाप्रतिष्ठा आदि भी इसमें समाविष्ट होते हैं । ___'रेवंतगिरिरासु' में कविने ऐतिहासिक प्रसंगो को मूर्त किया है। अतः ऐतिहासिक मूल्य भी बनता है। तीर्थप्रशस्ति उपरान्त कविता व गेयता भी यहां निहित है, जिससे यह केवल प्रशस्ति न रहते हुए एक काव्यकृति बनती है। कविने प्रकृतिवर्णन, मंदिर-पर्वतकी शोभा, वनस्पति आदि वर्णनोंसे काव्य को सजाया है। रसायुगके प्रारंभ की रचना होनेसे वर्णनादिमें संस्कृत व अपभ्रंश काव्यों का प्रभाव है । गुजराती काव्यसाहित्य के लक्षण व परंपरा अभी स्थापित नहीं हुए।
रास के आरंभमें जिनेश्वर - तीर्थंकर की स्तुति के पश्चात् देवीकी स्तुति
परमेश्वर तित्थेसरह पयपंकय पणमेवि भणिसु रासु रेवंतगिरे, अंबिकदेवि सुमरेवि ।
रेवंतगिरि पर तेजपाल आदि के कार्योकी प्रशंसाहेतु रचे गये इस रास के आरंभ में सोरट देश का वर्णन है।
गामागर पुर वणवहण सरि सरवरि सुपएसु देवभूमि दिसि पच्छिमह, मणहरु सोरठदेसु ।
(ग्राम, खान, पुर, वन, गहन नदियों व सरोवरोंसे शोभित प्रदेशोंवाला देवभूमिरूप मनोहर सोरठदेश पश्चिम दिशामें स्थित है।)
तत्पश्चात् ऐतिहासिक प्रसंग कवि गूंथते जाते है।
रासा प्रकारके आरंभ की यह कृति ऐतिहासिक प्रसंगो के आलेखनमें एक ढाँचा - परंपरा स्थापित करती है, जिसमें पश्चात्काल में जोड होते रहे है। कवि कहते है कि - यहाँ रेवंतगिरि पर नेमिकुमार का देवालय है, देशदेशांतर से संघ यात्रा के लिये आते है।
तसु मुह सणुदसद्दिसिवि देसदेसंतऊसंघ । पोरवाड कुलकी शोभारूप आसाराय का पुत्र वस्तुपाल उत्तम मंत्री है
रेवंतगिरिरासु - एक परिचय * 511