Book Title: Jain Ras Vimarsh
Author(s): Abhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
Publisher: Veer Tatva Prakashak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 635
________________ प्रसंग प्रस्तुत करते हुए इन पंक्तियों का गीत नाट्य- रूप प्रस्तुत किया था । 'नेमप्रभुना चरणकमलनी लगनी अमने लागी रे भर - यौवनमां राजुल जेवी रमणी जेणे त्यागी रे ॥१८ इन स्पष्ट अर्थवाली पंक्तियों ने कई प्रेक्षक - श्रोताओं को बडा ही अभिभूत और प्रभावित किया था। कई युवकों को जिनप्रवज्या की और कई जनों को जीवदया - प्राणीदया की तत्काल - परिणामदायिनी प्रेरणा इस से मिली थी। कई लोग विराग - दीक्षा की ओर मूडे थे । जैन परंपरा के उपरान्त, जैनेतर परंपरा में भी ऐसा ही शीघ्र परिणामी प्रभाव तब छोडा था नाट्यकार मुळजी आशाराम के वैराग्यप्रधान ‘राजा भरथरी’ के अदम्य प्रभावपूर्ण नाटक ने 'वैराग्य शतक' के रचयिता भर्तृहरि के स्वयं के जीवन की ये हृदयस्पर्शी संवाद पंक्तियाँ सभी प्रेक्षको के हृदयों को हिला रहीं थी । 'भेख रे उतारो राजा भरथरी । रानी करे रे पुकार, राजा भरथरी ॥' 'भिक्षा दे दे मैया पिंगला । जोगी खडा है द्वार, मैया पिंगला । जोगी तो जंगल के वासी, कैसा घर - संसार? मैया पिंगला | १९ फिर जहाँ १६ महासतियों और प्रातः वंदनीय तीर्थंकर माताओं का सा नारी का तारक - समुन्नत रूप है वहाँ शेक्सपियर के 'हेम्लेट' की लेडी मेकबैथ की frailty! thy name is woman ! की नारी के दूसरे एक विपरीत मायाकपट छलना पूर्ण रूप की भी स्मृति दिलाता हुआ कटु अनुभव राजा भर्तृहरि को भी रानी पिंगला के अविश्वसनीय, धोखापूर्ण, स्त्रीचरित्र से हुआ है । वे कैसे ऐसी रानी की 'भेख उतार कर संसार में लौटने की प्रार्थना पर विश्वास कर लौट आ सकते थे ?" यहाँ पर ब्रह्मगुलाल मुनि की इस जैन कथा में नवमुनि को अपनी सच्चरित्र पत्नी से ऐसा तो कोई कटु अनुभव नहीं हुआ है, फिर भी वे वन से घर लौटने को तैयार नहीं है| दृष्टव्य है इस नाट्य- कथा में ब्रह्मगुलाल मुनि और उनकी पत्नी का यह संवाद सवाल स्त्री का 586 * मैन रास विभर्श - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644