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'मुझे छोड मझधार चले हो, किसे बताओ प्यारे, किसका तकहूं सहारा, दिन अब कैसे कटे हमारे ?'
श्री मुनिराज का उत्तर - 'नारी की पर्याय बुरी है, पराधीन दु:ख सारे, छेदे स्त्रीलिंग, धर्म से होवे शरण तुम्हारे । २०
यहाँ ब्रह्मगुलाल मुनि और भगवान नेमनाथ को अपनी राजुल सी सच्चरित्र नारी के त्याग का कारण अलग है एवं शेक्सपियर-चित्रित लैडी मैकबेथवत् भर्तृहरि की विश्वासघातिनी, दुश्चरित्र रानी पिंगला के त्याग का कारण अलग है। फिर भी नारी का, नारी के प्रति की आसक्ति और विषयदृष्टि का त्याग तो ज्ञानियों ने सर्वोपरि दर्शाया है।
'सघळा आ संसारमा, रमणी नायकरूप। ए त्यागे त्याग्युं बधुं, केवळ शोक स्वरूप ॥२१
(समस्त संसार में नायकरूप है रमणी, जो ‘शोक-स्वरूप' होने से उसके त्याग में सारा ही त्याग समा जाता है।)
तो कथा जो चल रही है उसमें न तो मुनि ब्रह्मगुलाल जंगल से घर को लौटे, न वैरागी-जोगी भरथरी । अभी अभी का ताजा इतिहास है कि भरथरी के प्रेरक चरित्र ने, उसके उपर्युक्त नाटक ने भी अनेक युवक-प्रेक्षकों को बैरागी बनाकर घर से जंगल को भेजा था। इसका इतना तो भारीभीषण प्रभाव रहा कि भावनगर सौराष्ट्र में मुनिजी आशाराम-अभिनीत यह नाटक जब दिनों तक खेला जा रहा था, तब रोज-प्रतिदिन नाटक का कोई न कोई युवक-प्रेक्षक नाटक देखने के बाद बैरागी बनकर घरसंसार छोडकर भाग जाता था - पलायन कर जाता था। भावनगर राज्य के नरेश तत्कालीन महाराजा भी इन घटनाओं से चिंतित हो स्वयं इस नाटक को देखने और नट भर्तृहरि पात्र मूळजी आशाराम को बाद में गिरफ्तार करने तब नाट्यगृह में पधारे। उनकी इस मन्शा की भनक उक्त नट मूळजी आशाराम को पड गई। उस रात उसने एक ओर से महाराजा को भी स्तब्ध कर हृदय से हिला देने वाला ‘भर्तृहरि' के पात्र का अद्भुत अभिनय किया, और दूसरी ओर से गतिशील नाटक को अन्य पात्रों द्वारा चालु रखाकर स्वयं पर्दो के पीछे दरवाजे से, तैयार रखे हुए अपने अश्व पर सवार हो कर दूर चले गये, भावनगर
ब्रह्म गुलाल मुनिकथा: * 587