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पढते ही गुरुदेव सहजानंदघनजी-कथित-वर्णित उपर्युक्त बहुरूपिया मुनि की कथा की स्मृति हो आई। वही ये मुनि ब्रह्मगुलाल होने चाहिये ऐसी प्रतीति हुई। कथा भी सशक्त थी, परिश्रम कर विषायानुरूप प्रभावोत्पादक छंदोंरागों में उसे संगीत-स्वरबध्ध कर रिकार्ड किया, उसके श्रोताओं के उत्साहजनक प्रतिभाव प्राप्त हुए और वही कथा आज यहाँ प्रस्तुत है - समारोह के इस निबंध-शोधपत्र के रूप में और स्वरस्थ, रिकार्ड किये हुए सीड़ी रूप में भी। उसकी सार्थकता-असार्थकता : सफलता-असफलता : प्रभावोत्पादकता-अप्रभावोत्पादकता का निर्णय करना आप सर्व सुज्ञ विद्वद्जनों पर छोडता हूँ - विनम्रभाव से । पादटीप: १. श्री आत्मसिद्धि शास्त्र: सप्तभाषी-११३ २. वीतराग गीत: साध्वी मंजु' ३. श्रीआनंदघन पद्यरत्नावली-१२२'
'जिनेश्वर वाणी'-श्रीमद् राजचंद्रजी ५. डॉ. स्वामी ब्रह्मगुलाल मुनि (रघुवीर सिंहजैन) मुखपृष्ठ । ६. वही पृष्ठ-१ ७. वही, पृष्ठ-३ ८. पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी ९. स्वामी ब्रह्मगुलाल मुनि, पृष्ट ३ १०. वही पृष्ट -४ ११. वही पृष्ठ - ४ १२. वही १३. वही - प्र. ५ १४. वही - पृ. ६ १५. वही - पृ. ७ १६. वही- पृ. ८ १७. वही- पृ. ८ १८. गिरनारजी सिद्धक्षेत्र' : नेमराजुल कथागीत (स्वयंकृति, सी.डी.) १९. राजा भर्तृहरि २०. ब्रह्मगुलाल मुनिकथा - पृ. ८ २१. मोक्षमाळा : श्रीमद् राजचंद्रजी
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ब्रह्म गुलाल मुनिकथाः * 589