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ब्रह्म जिनदास कृत 'आदिनाथ रास' :
एक संक्षिप्त अध्ययन
प्रो. (डॉ.) वीर सागर जैन __ आश्चर्य की बात है कि हिन्दी साहित्य के इतिहास-ग्रन्थो में जहाँ कहीं भी ‘रास' संज्ञक रचनाओं का उल्लेख मिलता है, प्राय: सर्वत्र ही गिनेचुने पांच-सात रासों का ही नाम मिलता है; जबकि जैन कवियों ने हजारों की संख्या में ‘रास' संज्ञक रचनाओं का प्रणयन किया है। हिन्दी-साहित्य के इतिहास ग्रन्थो में उनका नामोल्लेख तक नहीं मिलता, समीक्षण और मूल्यांकन तो दूर की बात है।
__इन्ही जैन कवियों में ब्रह्म जिनदास का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है। ब्रह्म जिनदास पन्द्रहवीं शताब्दी के ऐसे महाकवि है जिन्होंने लगभग सत्तर कृतियाँ तैयार कर माँ भारती को भेंट की है।
रास-संज्ञक रचनाओं के प्रणयन में तो ब्रह्म जिनदास का स्थान और भी विशिष्ट या अनुपम है । गुणवत्ता एवं परिमाण-दोनों ही दृष्टिओं से इनका रास-साहित्य अद्भुत है। ब्रह्म जिनदास की रास-संज्ञक रचनाएँ निम्नलिखित
१. आदिनाथ रास ३. हरिवंश पुराण रास ५. हनुमंत रास ७. नागकुमार रास ९. सुदर्शन रास ११. जंबु स्वामी रास १३. धन्यकुमार रास १५. यशोधर रास १७. अंबिकादेवी रास १९. रात्रिभोजन रास २१. भद्रबाहु रास २३. सासरवासा को रास
२. राम रास ४. अजितजिनसेन रास ६. सुकुमात स्वामी रास ८. चारुदत्त रास १०. जीवंधर स्वामी रास १२. श्रेणिक रास १४. श्रीपाल रास १६. भविष्यदत्त रास १८. रोहिणी रास २०. गौतम स्वामी रास २२. समकित षष्टांग कथा रास २४. होली रास
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