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का स्वांग और अनेकों के साथ गर्जना करते हुए और पूंछ हिलाते हुए पहुँचे राजसभा में ।
बिलकुल शेर की वही विशाल काया, वही केशवाली, वही बडी दहाडभरी गर्जना और वही प्रभावभरी छटा जीता जागता वनकेशरी वनराज ही देख लो
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'भरी सभा में गर्ज कडक कर, आयां केशरी बलधारी ।
स्वामी ब्रह्मगुलाल मुनि की सुनो कथा अचरजकारी
हँसी खेल में स्वांग रचा ( बनाया) और जिनमत की दीक्षा धारी । १०
- किन्तु राजसभा में पहुँचते ही उन्हें दिखाई देता है मंत्री के उस षडयंत्र के एक भाग रूप, उनकी परीक्षार्थ वहाँ खडा किया गया एक पशु-बाल, एक बकरी का बच्चा । यदि वे उसे मारते है तो हिंसा होती है और नहीं मारने पर शेर के स्वांग और स्वभाव में अपूर्णता रह जाती है ।
'यारों ने बकरी का बच्चा, बांधा यों तक धरि मन में । देखें कैसा है यह जोगी, दया धर्म आराधन में ।"""
जोरों से गरजता हुआ और गर्व से पूंछ हिलाता हुआ सिंह यहाँ
बंधित बकरी के बच्चे को देखकर साँप-छछूंदर की सी विषम स्थिति अनुभव
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कर सोच में डूबा
'यदि उस चाल का पहले से पता होता तो कह सकता था या साथ आये लोगों से कहलवा सकता था कि मृगराज कहा जानेवाला शेर भूखा हो तभी ही हिंसा करता है, निरर्थक नहीं। फिर वन- राज और 'नटराज ' के इस सभ्य मानव-सभा वाले समागम में स्थान और काल का विवेक देखते हुए, अनुचित - अशोभन ऐसा हिंसा - कार्य नहीं किया जा सकता था । '
अपनी इस सबल दलील से राजा को राजी किया जा सकता था और मंत्री एवं राजकुमार को निरुत्तर - चुप ।
परंतु सिंहरूपधारी ब्रह्मगुलाल की इस पलभर की उधेडबुन टूटे उसके पूर्व तो मंत्री ने राजकुमार को इशारा किया और कुमार ने उन्हें मारा एक जोरदार ताना
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'सिंह नहीं तू स्यार है, मारत नाहिं शिकार । वृथा जन्म जननी दियो, जीवन को धिक्कार ॥
ब्रह्म गुलाल मुनिकथा: * 579