Book Title: Jain Ras Vimarsh
Author(s): Abhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
Publisher: Veer Tatva Prakashak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 627
________________ छंद, अलंकार, शिल्प, शकुन, वैद्यक, संगीत-गान और नाट्यादि विद्या-कलाओं में निपुण हो गये। लोग कहने लगे - ‘ब्रह्मगुलाल कुमार ने पूर्व उपायो पुन्य। याते बहुविद्या फुरी, कह्यो जगत् ने धन्य ॥'' ___- इस जगत-धन्य विद्या-धुनी को फिर धुन लगी लावनी गाने और विविध स्वांग सजाने की, बहुरूपिया की भाँति - 'अद्भूत रूप अनुपम विद्या, शरधानी जिन दर्शन का। पडि कुसंग में स्वांग खेलता, रास रचा वृन्दावन का। कभी राम, कभी कृष्ण रूप धर सीता, राधा, रुक्मिनी का। मन को मोहे लोग चकित भय, समा देख यह जोबन का।।" - ये बहुरूपिया नाटक-स्वांग ही सजाने की युवा ब्रह्मगुलाल की धुन माता-पिता के बहुत रोकने-समझाने पर कुछ सीमित तो हुई परंतु छूटी नहीं... । दुर सुदूर तक फैला उनकी इस विद्या-कला का यश और राजसभा में भी बढा उनका समादर, जो कि कारण बना- अन्य राजमंत्री के ईर्ष्या, तेजोद्वेष और षडयंत्रो का। __एक दिन की बात है - इसी दुर्भाव-द्वेष से प्रेरित होकर ब्रह्मगुलाल को नीचा दिखाने, उस मंत्रीने राजकुमार को उकसाया कि - 'बहुरूपिया श्री ब्रह्मगुलाल से तुम सिंह का (शेर का) स्वांग भरकर लाने को कहो ।' और राजकुमार ने राजा के सामने तुरंत ही आदेश दिया - • 'ब्रह्मगुलाल जी। आप हमें सिंह का स्वांग भरकर दिखायें ।' 'कुमार की बात स्वीकार्य है, राजन् । किन्तु यदि हमसे कोई चुक हो जाय तो अपराध क्षमा किया जाय ।' - त्रुटि निवाराणार्थ ब्रह्मगुलालजी ने राजा से यह प्रार्थना की, राजा ने उन्हें अभयदान का वचन दिया और राजकुमार ने भी दिया इस का लिखित आज्ञापत्र । चुक में एकाध जीव की हिंसा भी कर दें तो माफ। मंत्री की कुटिल चाल थी कि सिंहरूप धारी जैनी श्रावक ब्रह्मगुलाल से हिंसा करवाकर उन्हें या तो (उसके) श्रावक-धर्म से गिराया जाय, या सिंह के स्वांग की हँसी उडाकर उनके बढते हुए प्रभाव को तोड दिया जाय । इस चाल भरे षडयंत्र से अनजान ब्रह्मगुलालजी ने तो बनाया हुबहु सिंह 578 * छैन. स.विमर्श

Loading...

Page Navigation
1 ... 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644