Book Title: Jain Ras Vimarsh
Author(s): Abhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
Publisher: Veer Tatva Prakashak Mandal

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Page 625
________________ की नाट्यात्मक कथा 'बृहत् जिनवाणी संग्रह', पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी एवं 'स्वामी ब्रह्मगुलाल मुनि' शीर्षक पुस्तको में प्रकाशित है (और इस पंक्तिलेखक ने उसे अपने स्वर में स्वररस्थ-रिकार्ड भी किया है।) इस में प्रयुक्त छंद भी सुगेय और वीररस, वैराग्यरस-शान्तरस से पूर्ण है - यथा: कोशमालिनी छंद, कुंकुम छंद, जोगी रासाछन्द-नरेन्द्र छंद, लावनी और दोहा इत्यादि । रचयिताने बड़े ही प्रभावोत्पादक ढंग से इस नाट्य-कृति में ये छंद ऐसे तो प्रस्तुत किये है कि गानेवाले को श्रोता, मंत्रमुग्ध बनकर सुनते जाते है और अंत में शांत और वैराग्य रस में डूब जाते है। कृतिकार कौन है ? __किसी अज्ञात कृतिकार द्वारा रचित यह रासावत् कथाकृति पूर्वोक्त सुगेय छंदो में सरित-धारावत् बहती हुई निम्न ढालाओं या प्रकरणो में विभाजित और प्रस्तुत होती चली है। प्रारंभ में उसके वर्तमानकाल के - ५० वर्ष पूर्व के प्रस्तुतकर्ता उर्दू मिश्रित आधुनिक हिन्दी में उसका संक्षिप्त परिचय, इन दो पंक्तियों के द्वारा देते है। 'यह कहानी है अजब, कागज पे जो तहरीर है। गौर से पढिये इसे, जिनधर्म की तसवीर है॥ और फिर वे कुछ प्राचीन हिन्दी में कथासाररूप यह ‘ब्रह्मगुलाल मुनिउपदेश' देकर आगे चलते हैं - 'सर्व परिग्रह त्याग कर, धारण कर मुनि भेष। सत्य क्षमा उर धारिके, दिया यही उपदेश ।। नहीं धरा पर कुछ धरा, भरा क्लेश निहषेष। तात तुम सब भव्य जन, तजो राग और द्वेष ।। तजो राग और द्वेष, परस्पर इर्ष्या करना छोडो। करके निज कल्याण धर्म से, कर्म आठ को तोडो॥ कहते ब्रह्मगुलाल मुनि, अब समझो बात सकारी। नहीं दुनिया में कोई किसी का, बेटा, वनिता, नारी ॥६ 576 * छैन. स. विमर्श

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