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पास शंख एवं धनुष जैसे शस्त्र हैं तथा वे नाग शय्या पर सोते है। यदि तुम्हारे में भी ताकत हो, तथा इन शस्त्रों को अगर प्राप्त कर सको तो वह उनके कपडे धो सकती है। नेमिकुमार को भाभी की बात अच्छी नहीं लगी। वन क्रीडा से लौटने के बाद कुमार नारायण के घर गये और वहाँ उनका शंख पूर दिया । शंख पूरने से तीनों लोकों में खलबली मच गई। कुमार ने नारायण के धनुष की प्रत्यंचा को भी चढ़ा दिया । श्रीकृष्ण वहाँ आकर क्रोधित हो कुमार को डाँटने लगे। दोनों में मल्लयुद्ध होने लगा। लेकिन श्रीकृष्ण कुमार को पराजित नहीं कर सके ।
तत्पश्चात् नारायण श्रीकृष्ण ने कुमार के घर आकर शिवादेवी के चरण स्पर्श किये तथा कहा कि नेमिकुमार युवा हो गए हैं अत: शीघ्र ही उनका विवाह करना चाहिए तथा यह भी बतलाया कि उग्रसेन की पुत्री उनके योग्य कन्या है । माता ने नारायण के कहने पर अपनी अनुमति दे दी। इसके पश्चात् नारायण ने राजा उग्रसेन के सामने राजुल के विवाह का प्रस्ताव रखा | उग्रसेन ने सोचा कि घर बैठे गंगा आ गई और अपने भाग्य का गुणगान किया। ज्योतिषी को बुलाया गया तथा दोनों के नक्षत्र देखे गए। उग्रसेन और श्रीकृष्ण ज्योतिषी से कहने लगे कि -
अहो लेहु शुभ लग्न जिव होई कुसलात, रोग बिजोगन सांचरौ । स्वामि राहु सनिशर टालि जै लाभ, श्री नेमिजिनेश्वर पाय नमूं ॥२९ ज्योतिषी ने लग्न देखते हुए कहा कि - अहो मांडि जी खडहि कियौ बखान, ग्यारह सुरु गुरु राज लथान । नेमि नौ सात उरवि लौ अहो लिख्यौ जी लग्न गीणी ज्योतिगी यां ज्ञान ।
इस प्रकार राजुल तथा नेमिकुमार का सम्बन्ध निश्चित हो गया तथा श्रीकृष्ण के आँचल में पान, सुपारी, हल्दी और नारियल समर्पित किया गया । नारायण श्रीकृष्ण द्वारा सुपारी स्वीकारते ही चारों ओर हर्षोल्लास होने लगा। बाजे बजने लगे तथा घर-घर में गीत गाये जाने लगे। मधुर स्वादिष्ट षट् रस भोजन बनाए गए तथा सभी लोग एक पंक्ति में बैठकर भोजन करने लगे । भोजनोपरांत ताम्बूल प्रदान किए गए। वस्त्राभूषणों की तो कोई गिनती ही नहीं थी। अन्त में नारायण को हाथ जोडकर विदा कर दिया गया। लग्न लेकर जब श्रीकृष्ण वापिस पहुँचे तो शिवादेवी से कुमार के विवाह की तैयारियाँ करने को कहा। एक तरफ युवतियाँ गीत गाने लगी। तेल इत्रादि छिडका
546 * छैन रास.विमर्श