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जाने लगा तथा केसर- कस्तूरी तथा फूलों से सारा राजमहल सुगन्धित होने लगा। दूसरी ओर विश्वसनीय सेवकों को बुलाकर महिष, सुकर, सांभर, रोझ, सियाल आदि को एक बाड़े में बन्द किए जाने का आदेश दिया गया । यथा अहो तब लगु केसौ जी रच्यौ हो उबाउ, सेवक आपणा लीयाजी बुलाई। वेग देव नमौ जी गम करौ, अहो छै लाहो महिष हरण सुवर । सांबर रोझ सियाल, वेग हो जाई बाडौ रचौ
अहो गौरण ओग्रजी सेणि भोवाल ||
कुमार की वरयात्रा में सभी यादव परिवारों के साथ-साथ कौरव और पाण्डव भी थे। सभी वरयात्री सजधजकर आंखों में काजल, मुख में पान तथा केशर, चन्दन, कुंकुम के तिलक लगाए हुए पालकी, रथ एवं हाथियों पर सवार होकर चले । लेकिन जिस समय बारात ने प्रस्थान किया तो दायीं ओर रासभ पुकारने लगा, रथ की ध्वजा फट गयी, कुत्ते ने कान फडफडाया तथा बिल्ली ने रास्ता काट दिया ।
कुमार के सेहरा बँधा हुआ था तथा उनके गले में मोतियों की माला लटक रही थी । कानों में कुण्डल थे तथा मुकुट में हीरे जड़े हुए थे । उनके वस्त्र विशेषकर दक्षिण देश से मँगाये गए थे। बारात जब नगर में पहुँची तो बाजे बजने लगे, शंख ध्वनि होने लगी । बारात का धूमधाम से स्वागत हुआ तथा महाराज उग्रसेन ने कुमार से कृपा रखने के लिए निवेदन किया । अगले दिन लग्न की वेला आयी तो कुमार अपने परिजनों सहित तोरण के लिए पहुँचे । उनके स्वागत में महिलाओं ने मंगल गीत गाये तथा राजुल ने अपना सम्पूर्ण श्रृंगार किया । यथा
अहो मंदिर राजल करौ जी सिंगार, सोहै जी गली रत्नांड्यौ हार | नासिका मोती जी अति वण्यौ, अहो पाई नेवर महा सिरहा मैह-मंद । काना हो कुंडल अति भला, अहो मेरु दुहुं दिसो जिम सूर अर चंद ||
लेकिन जैसे ही कुमार तोरण द्वार पर उपस्थित हुए तो उन्हें कहीं से अनेक पशुओं की करुण एवं हृदय विदारक पुकार सुनाई दी । उनकी पुकार सुनकर कुमार शान्त न रह सके और उस करुण पुकार का कारण पूछा । जब कुमार को ज्ञात हुआ कि ये पशु उन्हीं की वरयात्रा में आए हुए बारातियों के लिए हैं तो चिन्तित हो उठे और इस सब को पाप का मूल कारण जानकर विवाह के स्थान पर वैराग्य लेने को अधिक उचित जानकर कंकन तोड
ब्रह्मरायमलकृत नेमीश्वर रास का समीक्षात्मक अध्ययन * 547
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