Book Title: Jain Ras Vimarsh
Author(s): Abhay Doshi, Diksha Savla, Sima Ramhiya
Publisher: Veer Tatva Prakashak Mandal

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Page 614
________________ इसके बाद भगवान नेमनाथ दीक्षा की पूर्वतयारी रूप वर्षीदान देने लगे। दरिद्रों का दारिद्रय दूर किया । चौसठ इन्द्र प्रभु की वंदना करते है, गंधोदक, पंचवर्ण, पुष्पों की वर्षा करते है। देवतागण बिरुदावली गाते है। महादीक्षा का समय निकट आता है। यह सारा वर्णन गणिवर पद्मविजयजी ने अत्यंत सुंदर ढंग से सरल शब्दों में इस प्रकार किया है कि श्रोता और पाठक की दृष्टि समक्ष उसका तादृश चित्र उपस्थित हो जाता है। कुमारावस्था में काम सुमट को जीतनेवाले भगवान नेमनाथ की ऐसी भव्य आकृति हमारे सामने उपस्थित करने में कविवर पूर्णत: सफल हुए है। प्रभु शिबिका से उतरकर पंचमुष्टि लोच करते है। प्रभु जो तीन ज्ञान के स्वामी थे, उन्हें मन:पर्यव ज्ञान उत्पन्न होता है। प्रभु - ‘अकषायी-अविषायी' अभयदानदाता पृथ्वीतल पर विचरण करते है। घनघाती कर्म रूपी गिरि को तोडते हुए चौपन दिन व्यतीत हुए। पचपनवें दिन प्रभु को - _ 'आशोवदि पहले प्रहर अमावस्या ने दिन पंचावन में दहाडे केवल ज्ञान उत्पन्न...। लोकालोक प्रकाशकं, अप्रतिहत ने अनंत अप्रतिपाति एहथी मूर्त अमूर्त भासंत।' - अन्य तीर्थंकर भगवतों की भाँति प्रभु को केवलज्ञान प्राप्त होते ही सर्वत्र आनंद प्रसरित हो जाता है। नारकी भी कुछ क्षणों के लिए शाता का अनुभव करते है। यह सारा वर्णन कविवर ने इस प्रकार किया है कि पढते पढते हम भी आनंद सागर में डूब जाते है। इस ढाल के अंत में कविवर गान करते है - 'इम चोथे खंडे रंग अखंड गवाय पहले अधिकारे समोसरण रचाय पन्नरमी ढाले उत्तमविजय नो बाल, कहे पद्मविजयसुर, महिमा अतिहि रसाल....' भगवान का उपदेश - नरभव अति दुर्लभ है। जीव कर्मानुसार चार गतियों में भटकता है, नरक की पीडा भोगता है, मनुष्य भव में भी पूर्ण सुख तो है ही नहीं। आर्य देश में जन्म पाने के बाद श्री नेमीश्वर रास * 565

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