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अहो जेठि मांसा अति तपति को काल, सीतल भोजन सोवन थाल । करौ हो भगति अति कामिनी, अहो घर में जी संपदा बहुविधि हो । दीन वचन घरि घरि फिरै, स्वामि ता नरस्यो भलौ कहै न कोई || २३ आषाढ मास आषाढ मास आते ही पशु-पक्षी सब अपना-अपना घर बना कर रहने लगते हैं तथा परदेश में रहने वाले घर आ जाते है, लेकिन आपने तो अपनी जिद्द पकड़ ली है । आप पर मन्त्र-तन्त्र का भी कोई असर नहीं होता। इसलिए मेरी प्रार्थना अपने चित्त में धारण करो । यथा
अहो मास आसाढ आवै जब जाई, पसूहो पंखि रहै सब घर छाई । परदेसी घरां गम करै, अहो तुम्ह नै जीदई लगाई वाय । मंत्र तंत्रानवि ऊतजी, स्वामी बात चित्त में धरौ जादो जी राई ॥२४
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ब्रह्म रामल्ल ने राजुल की व्यथा को बहुत ही संयत भाषा में छन्दोबद्ध किया है। विरह-वेदना के साथ-साथ राजुल के शब्दों में कवि ने जो अन्य धार्मिक क्रियाओं का तथा नेमिनाथ की मुनि क्रिया का उल्लेख किया है। उससे राजुल के कथन में स्वाभाविकता आ गई है । अन्त में राजुल नेमिनाथ . से यही प्रार्थना करती है के इस जन्म में जो कुछ भोग भोगना है उन्हें भोग ही लेना चाहिए, क्योंकि अगला जन्म किसने देखा है । वास्तव में जब घर में खाने को खूब अन्न है तो लंघन करके भूखों मरने से तो उल्टा पाप लगता है। इसके अतिरिक्त उस तरह मरने का भी क्या अर्थ है जिसको कोई लकडी देने वाला नहीं । यथा
अहो असा जी वाराह मास कुमार रिति रिति भोग कीजै अतिसार । आता जन्म को को गिणै, अहो घर मैं जी नाज खावानै जी होय । पापि लांघण करि मरौ, स्वामि मुवा थे लाकडी देई न कोई ॥ २५ कथावस्तु प्रस्तुत नेमीश्वररास एक पौराणिक काव्य है । इसके नायक पौराणिक हैं तथा कथावस्तु का आधार महापुराण तथा हरिवंश पुराण हैं, लेकिन स्वयं कवि ने अपने काव्य में कथा के आधार का उल्लेख नहीं किया है । इसमें २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ का जीवन चरित अंकित किया गया है। नेमिनाथ नारायण श्रीकृष्ण के चचेरे भाई थे । ये यदुवंशी समुद्रविजय के पुत्र थे। इनकी माता का नाम शिवादेवी था। एक बार रात्रि में इन्होंने सोलह स्वप्न देखे और पति से इन स्वपनों का फल पूछा । तब पतिदेव ने बतलाया
544 * छैन यस विमर्श
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